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________________ लेश्या-कोश ३८५ सलेशी द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीवों में अपने-अपने में अल्पबहुत्व अग्निकायिक जीवों की तरह जानना चाहिए । ( देखो पाठ ६१७ ) .११.११ पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीवों में एएसि णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं एवं जाव सुक्कलेसाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ४ ? गोयमा ! जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाणं, नवरं काऊलेस्सा असंखेज्जगुणा । -पण्ण० प १७ । उ २ । सू १६ । पृ० ४३६ सलेशी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों में अल्पबहुत्व औधिक तिर्यचयोनिक जीवों की तरह जानना चाहिए ( देखो पाठ ६१.३ ) लेकिन कापोतलेश्या को असंख्यात गुणा कहना चाहिए। '६१.१२ संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक जीवों मेंसंमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा तेउकाइयाणं । -पण्ण० प १७ । उ २ । सू १६ । पृ० ४३६ समूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों में अल्पबहुत्व अग्निकायिक जीवों की तरह जानना चाहिए । ( देखो पाठ ६१.७ ) '६१.१३ गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों में गब्भवक्कतियपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाणं, नवरं काऊलेस्सा संखेज्जगुणा । -पण्ण० प १७ । उ २ । सू १६ । पृ० ४३६ गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक जीवों में अल्पबहुत्व औधिक तिर्यंचयोनिक की तरह जानना चाहिए। लेकिन कापोतलेश्या में संख्यात गुणा कहना चाहिए । ( देखो पाठ ·६१.३ ) लेकिन टीकाकार कहते हैं कि कापोतलेश्या में 'असंख्यात' गुणा कहना चाहिए। गर्भव्युत्क्रांतिकपंचेन्द्रियतिर्य गयोनिकसूत्रे तेजोलेश्याभ्यः कापोतलेश्या असंख्येयगुणा वक्तव्याः तावतामेव तेषां केवलवेदसोपलब्धत्वात् । '६१.१४ ( गर्भज ) पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक स्त्री जीवों मेंएवं तिरिक्खिजोणिणीण वि । -पण्ण० प १७ । उ २ । सू १६ । पृ० ४३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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