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________________ ३८२ लेश्या-कोश जैसे भवसिद्धिक के चार शतक कहे गये है, वैसे ही अभवसिद्धिक के चार शतक कहने चाहिए लेकिन अभवसिद्धिक में चरम-अचरम को छोड़कर नौ उद्देशक ही कहने चाहिए। ९१ सलेशी जीव और अल्पबहुत्व'६१.१ औधिक सलेशी जीवों में अल्पबहुत्व (क) एएसि गं भंते ! जीवाणं सलेस्साणं कण्हलेस्साणं जाव सक्कलेस्साणं अलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, अलेस्सा अणंतगुणा, काऊलेस्सा अणंतगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, सलेस्सा विसेसाहिया। -पण्ण ० प ३ । द्वार ८ । सू ३६ । पृ० ३२८ -पण्ण० पद १७ । उ २ । सू १४ । पृ० ४३८ -जीवा० प्रति ६ । सर्व जीव । सू २६६ । पृ० २५८ सबसे कम शुक्ललेश्या वाले जीव होते हैं, उनसे पद्लेश्यावाले जीव संख्यातगुणा हैं, उनसे तेजोलेश्यावाले जीव संख्यातगणा हैं, उनसे लेश्या रहित ( अलेशी ) जीव अनन्तगुणा है, उनसे कापोत लेश्यावाले जोव अनन्तगुणा हैं, उनसे नीललेश्या वाले जीव विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाले जीव विशेषाधिक हैं, तथा उनसे सलेशी जीव विशेषाधिक हैं। (ख) सव्वथोवा अलेस्सा सलेस्सा अणंतगुणा । -जीवा० प्रति ह । सर्व जीवा । सू २४५ । पृ० २५२ अलेशी जीव सबसे कम तथा सलेशी जीव उनसे अनन्त गुणा हैं । '६१-२ नारकी जीवों में एएसि णं भंते ! नेरइयाणं कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काऊलेसाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ४ ? गोयमा! सव्वत्थोवा नेरइया कण्हलेसा, नीललेसा असंखेज्जगुणा, काऊलेसा असंखेज्जगुणा । –पण्ण० प १७ उ २ । सू १५ । पृ० ४३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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