SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 532
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७० लेश्या-कोश कण्हलेस्सतेओगेहि वि एवं चेव उद्देसओ। कण्हलेस्सदावरजुम्मे हिं एवं चेव उद्देसओ। कण्हलेस्सकलिओगेहि वि एवं चेव उद्देसओ। परिमाणं संवेहो य जहा ओहिएसु उद्देसएसु। जहा कण्हलेस्सेहिं एवं नीललेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा निरवसेसा। नवरं नेरइयाणं उववाओ जहा वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव । काउलेस्सेहि वि एवं चेव चत्तारि उहेसगा कायवा। नवरं नेरइयाणं उववाओ जहा रयणप्पभाए, सेसं तं चेव । तेऊलेस्सरासीजुम्मकडजुम्मअसुरकुमारा णं भंते ! कओ उववज्जति०? एवं चेव । नवरं जेसु तेऊलेस्सा अस्थि तेसु भाणियव्वा । एवं एए वि कण्हलेस्सासरिसा चत्तारि उद्देसगा कायव्वा । ___ एवं पम्हलेस्साए वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं वेमाणियाण य एएसिं पम्हलेस्सा, सेसाणं नत्थि। जहा पम्हलेस्साए एवं सुक्कलेस्साए वि चत्तारि उद्देसगा कायव्वा । नवरं मणुस्साणं गमओ जहा ओहि(य)उद्देसएसु, सेसं तं चेव । एवं एए छसु लेस्सासु चउवीसं उहेसगा, ओहिया चत्तारि । -भग० श ४१ । उ ५ से २८ । १० ६३६-३७ कृष्णलेशी राशियुग्म कृतयुग्म नारकी का उपपात जैसा धूमप्रभा नारकी का कहा गया है, वैसा ही समझना चाहिए । अवशेष प्रथम उद्द शक की तरह समझना चाहिए। असुरकुमार यावत् वानव्यंतर देव तक ऐसा ही समझना चाहिए । मनुष्यों के सम्बन्ध में नारकियों की तरह जानना चाहिए । वे यावत् आत्मअसंयम का आश्रय लेकर जीते हैं तथा उनके विषय में अलेशी, अक्रिय तथा उसी भव में सिद्ध होते हैं-ऐसा न कहना चाहिए । अवशेष जैसा प्रथम उद्दशक में कहा गया है, वैसा ही कहना चाहिए। कृष्णलेशी राशियुग्म योज, कृष्णलेशी राशियुग्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy