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________________ लेश्या-कोश ३६९ सक्रिय जीवों में कितने ही उसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं तथा कितने ही उसी भव में सिद्ध नहीं होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं करते है। जो कृतयुग्म राशि रूप मनुष्य आत्म असंयम का आश्रय लेकर जीते हैं वे सलेशी हैं, अलेशी नहीं हैं तथा वे सलेशी मनुष्य क्रियावाले हैं, क्रियारहित नहीं हैं तथा वे सक्रिय मनुष्य उसी भव में सिद्ध नहीं होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं करते हैं । वानव्यन्तर-ज्योतिषी-वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा नारकी के विषय में कहा गया है, वैसा ही समझना चाहिए। '२ रासीजुम्मतेओयनेरइया० x x x एवं चेव उहेसओ भाणियव्वो। x x x सेस तं चेव जाव वेमाणिया। ( उ २ ) रासीजुम्मदावरजुम्मनेरइया० x x x एवं चेव उद्देसओ xxx सेसं जहा पढमुद्देसए जाव वेमाणिया। ( उ ३ ) रासीजुम्मकलिओगनेरइया० x x x एवं चेव x x x सेसं जहा पढमुद्देसए एवं जाव वेमाणिया । ( उ ४ ) -भग० श ४१ । उ २ से ४ । पृ० ६३६ राशि युग्म में योज राशि रूप नारकी यावत् वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा राशियुग्म कृतयुग्म प्रथम उद्देशक में कहा गया है, वैसा ही समझना चाहिए। राशियुग्म में द्वापरयुग्म रूप नारकी यावत् वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा प्रथम उद्देशक में कहा गया है, वैसा ही जानना चाहिए । राशियुग्म में कल्योज राशि रूप नारकी यावत् वैमानिक देवों के सम्बन्ध में जैसा प्रथम उद्देशक कहा गया है, वैसा ही जानना चाहिए । '३ कण्हलेस्सरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ? उववाओ जहा धूमप्पभाए, सेसं जहा पढमुद्देसए। असुरकुमाराणं तहेव, एवं जाव वाणमंतराणं । मणुस्साण वि जहेव नेरइयाणं 'आयअजसं उवजीवंति'। अलेस्सा, अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति एवं न भाणियव्वं । सेसं जहा पढमुद्देसए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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