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________________ लेश्या-कोश २७३ कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक जीव कृष्णलेशी पृथ्वीकायिक योनि से, कृष्णलेशी अपकायिक जीव कृष्णलेशी अपकायिक योनि से तथा कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक जीव कृष्णलेशी वनस्पतिकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य के शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। '७० ३ नीललेशी जीव की अनन्तर भव में मोक्ष प्राप्ति नीललेशी पृथ्वीकायिक जीव नीललेशी पृथ्वीकायिक योनि से, नीललेशी अपकाधिक जीव नीलेशी अप् कायिक योनि से तथा नीललेशी वनस्पतिकायिक जीव नीललेशी वनस्पतिकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है मनुष्य के शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है । ( देखो पाठ '७०२) '७१ लेश्या का विशुद्धिकरण और तदावरणिय कर्म के क्षयोपशम आदि से ज्ञानोत्पत्ति [चाहे सम्यग्दृष्टि हो, चाहे मिथ्यादृष्टि हो, अवधि ज्ञान आदि की उत्पत्ति के समय विशुद्धलेश्या, प्रशस्त अध्यवसाय, शुभ परिणाम व तदावरणीय कर्म का क्षयोपशम आदि का उल्लेख मिलता है। ] १-छद्मस्थ अवस्था में भगवान ने पाँचवाँ चतुर्मास भद्दिलपुर नगर में किया । चतुर्मास समाप्त कर भगवान कदली ग्राम, जंबुखण्डनाम, तंबाक ग्राम, कपिका नाम, वैशाली नगरी, ग्रामक ग्राम होते हुए माघ मास में शालिशीर्ष नामक ग्राम में पधारे। वहाँ उद्यान में भगवान् प्रतिमा में स्थित थे। उस समय भगवान् को शुभ अध्यवसाय, अवधि ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम आदि के कारण लोकप्रमाण अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ। कहा है। छ?ण सालिसीसे विसुज्झमाणस्स लोगोधी । —आव० नि गा ४८६ मलय टीका-x x x तदानीं च षष्ठेन-दिनद्वयोपवासेन तिष्ठतस्तीव्रवेदनामधिसहमानस्य शुभैरध्यवसायविशुद्धयमानस्यलोकप्रमाणोऽवधिरभूत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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