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________________ २७२ लेश्या-कोश सिज्झइ जाव अंतं करेइ ? हंता मागंदियपुत्ता ! काऊलेस्से पुढविकाइए जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ । से नूणं भंते ! काऊलेस्से आउकाइए काऊलेस्सेहिंतो आउकाइएहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभइ माणुसं विग्गह लभइत्ता केवलं बोहिं बुज्झइ, जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ ? हंता मागंदियपुत्ता ! जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ । से नूणं भंते ! काऊलेस्से वणस्सइकाइए एवं चेव जाव अंतं करेइ । -भग० श १८ । उ ३ । सू १ से ३ । पृ० ७६६ - कापोतलेशी पृथ्वीकायिक जीव कापोतलेशी पृथ्वीकायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य शरीर को प्राप्त करके, केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलबोधि को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अंत करता है । ____ कापोतलेशी अपकाथिक जीव कापोतलेशी अप कायिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य शरीर को प्राप्त करके, केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है। कापोतलेशी वनस्पतिकायिक जीव कापोतलेशी वनस्पतिकाधिक योनि से मरण को प्राप्त होकर तदनन्तर मनुष्य के शरीर को प्राप्त करता है, मनुष्य शरीर को प्राप्त करके केवलज्ञान को प्राप्त करता है तथा केवलज्ञान को प्राप्त करने के बाद सिद्ध होता है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करता है । आर्यों के पूछने पर भगवान महावीर ने भी ( अहंपि णं अज्जो! एवमाइक्खामि ) माकंदीपुत्र के उपयुक्त कथन का समर्थन किया है। '७०२ कृष्णलेशी जीव की अनंतर भव में मोक्ष प्राप्ति एवं खलु अज्जो! कण्हलेम्से पुढविकाइए कण्हलेस्सेहितो पुढविकाइएहिंतो जाव अंतं करेइ ; एवं खलु अज्जो ! नीललेस्से पुढविकाइए जाव अंतं करेइ, एवं काऊलेस्से वि, जहा पुढविकाइए वि, एवं आउकाइए वि, एवं वणस्सइकाइए वि सच्चे णं एसमह ।। -भग० श १८ । उ ३ । सू३ । पृ० ७६६-६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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