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________________ लेश्या - कोश तमतमाप्रभा पृथ्वी के जो चार असंख्यात विस्तार वाले नरकावास हैं उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात परम कृष्णलेशी नारकी उत्पन्न ( ग० १) होते हैं, जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात परम कृष्णलेशी नारकी मरण ( ग० २ ) को प्राप्त होते हैं ; तथा एक समय में असंख्यात परम कृष्णलेशी नारकी अवस्थित ( ग० ३ ) रहते हैं । २५८ सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नरकावास एक लाख योजन विस्तार वाला है तथा बाकी चार नरकावास असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। देखो - जीवा० प्रति ३ । उ२ । सू ८२ । पृ० १३८, तथा ठाण० स्था ४ । उ ३ | सू ३२६ । पृ० २४६ । '६८२ देवावासों में चोसट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेज्ज वित्थडेसु असुरकुमारावासेसु एगसमएणं x x x केवइया तेऊलेस्सा उववज्जंति Xxxx एवं जहा रयणप्पभाए तहेव पुच्छा, तहेव वागरणं । × × × उव्वट्ट तगा वि तहेव x x x तिसु वि गमएसु संखेज्जेसु चत्तारि लेस्साओ भाणियव्वाओ, एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि, नवरं तिसु वि गमएस असंखेज्जा भाणियव्वा । सू ४ । केवइया णं भंते! नागकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता ? एवं जाव थणियकुमारावास० नवरं जत्थ जत्तिया भवणा । सू५ । संखेज्जेसु णं भंते! वाणमंतरावाससयसहस्सेसु एगसमएणं केवइया वाणमंतरा उववज्जंति ? एवं जहा असुरकुमाराणं संखेज्जवित्थडेसु तिन्नि गमगा तहेव भाणियव्वा, वाणमंतराण वि तिन्नि गमगा । सू ७ । केवइया णं भंते! जोइसियविमाणावासयसहम्सा पन्नत्ता ? गोमा ! असंखेज्जा जोइसियविमाणावासस्यसहस्सा पत्ता, भंते! किं संखेज्जवित्थडा० ? एवं जहा वाणमंतराणं तहा जोइसियाण वि तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं एगा तेऊलेस्सा । सू ८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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