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________________ २४२ लेश्या-कोश सलेशी जीव ( एकवचन-बहुवचन ) प्रथम नहीं है, अप्रथम है। इसी तरह कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी तक जानना। जिस जीव के जितनी लेश्याएं हो उसी प्रकार कहना। अलेशी जीव ( जीव-मनुष्य-सिद्ध ) प्रथम है, अप्रथम नहीं है। ६३ सलेशी जीव चरम-अचरम सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो जहा आहारओ, नवरं जस्स जा अत्थि [ सव्वत्थ एगत्तेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे, पुहुत्तेणं चरिमा वि अचरिमा वि ] अलेस्सो जहा नोसन्नी-नोअसन्नी [ नोसन्नी-नोअसन्नी जीवपए सिद्धपए य अचरिमे मणुस्सपए चरिमे एगत्तपुहुत्तेणं । ] -भग० श १८ । उ १ । सू २६ । पृ० ७६३ - सलेशी, कृष्णलेशी यावत् शुक्ललेशी जीव सर्वत्र एकवचन की अपेक्षा कदाचित् चरम भी होता है, कदाचित् अचरम भी होता है। बहुवचन की अपेक्षा सलेशी यावत् शुक्ललेशी चरम भी होते हैं, अचरम भी । अलेशी जीवपद से तथा सिद्धपद से अचरम है तथा मनुष्यपद से चरम है एकवचन से भी, बहुवचन से भी। '६४ सलेशो जीव की सलेशोत्व की अपेक्षा स्थिति '६४.१ सलेशी जीव की स्थिति सलेसे णं भंते ! सलेसेत्ति पुच्छा । गोयमा ! सलेसे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए। –पण्ण० प १८ । द्वा ८ । सू ६ । पृ० ४५६ सलेशी जीव सलेशीत्व की अपेक्षा दो प्रकार के होते हैं। (१) अनादि अपर्यवसित तथा (२) अनादि सपर्यवसित । ६४.२ कृष्णलेशी जीव की स्थिति कण्हलेस्से णं भंते ! कण्हलेसेत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइ अंतोमुहुत्तमब्भहियाई। --पण्ण० प १८ । द्वा८ । सू६ । पृ० ४५६ -~-जीवा० प्रति ६ । सू २६६ । पृ. २५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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