SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 403
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४१ लेश्या-कोश .६१.७ शुक्ललेशी जीव-दंडक और समपद सुक्कलेस्सा वि तहेव जेसिं अत्थि, सव्वं तहेव जहा ओहियाणं गमओ, नवरं पम्हलेस्ससुक्कलेस्साओ पंचेंदितिरिक्खजोणियमणुस्सवेमाणियाणं चेव, न सेसाणं ति ।। -पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११ प० ४३७ जैसा औधिक दंडक के विषय में कहा-वैसा ही शुक्ललेशी दंडक के विषय में समझना परन्तु जिसके शुक्ल लेश्या होती है उसी के कहना । सम्मुच्चयगाथा सलेस्सा णं भंते ! नेरइया सव्वे समाहारगा ? ओहियाणं, सलेस्साणं, सुक्कलेस्साणं, एएसि णं तिण्हं एक्को गमो, कण्हलेस्साणं नीललेस्साणं वि एक्को गमो, नवरं वेयणाए मायिमिच्छादिट्ठीउववनगा य, अमायिसम्म दिट्ठीउववन्नगा य भाणियव्वा । मणुस्सा किरियासु सरागवीयरागपमत्तापमत्ता ण भाणियव्वा । काऊलेसाए वि एसेव गमो । नवरं नेरइए जहा ओहिए दंडए तहा भाणियव्वा, तेउलेस्सा, पम्हलेसा जस्स अत्थि जहा ओहिओ दंडओ तहा भाणियव्वा । नवरं मणुस्सा सरागा य वीयरागा य न भाणियव्वा । गाहा-दुक्खाउए उदिन्ने, आहारे कम्मवन्न-लेस्सा य । समवेयण-समकिरिया, समाउए चेव बोधव्वा ।। -भग० श १ । उ २ । सू ६७ । पृ०३६३ '६२ लेश्या तथा प्रथम-अप्रथम सलेस्से णं भंते !-( पढमे-अपढमे ) पुच्छा ? गोयमा ! जहा आहारए, एवं पुहुत्तेण वि, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा एवं चेव, नवरं जस्स जा लेस्सा अस्थि । अलेस्से णं जीवमणुस्ससिद्ध जहा नोसन्नी-नोअसन्नी। [ नोसन्नी-नोअसन्नी जीवे मणुस्से सिद्ध पढमे, नोअपढमे । एवं पुहुत्तेण वि । ] -भग० श १८ । उ १ । सू ११ । पृ० ७६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy