SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 36 ) तेजोलेश्या को पीछे खींचा और भगवान महावीर के प्रति इस प्रकार बोलाहे भगवन् | मैंने जाना - हे भगवन् | मैंने जाना | १ भगवान महावीर से गोशालक पृथक् होकर उसने संक्षिप्त - विपुल तेजोलेश्या छः मास में प्राप्त की । गोशालक ने तेजोलेश्या के द्वारा भगवान महावीर के दो शिष्य - क्रमशः सर्वानुभूति अनगार तथा सुनअत्र मुनि को जलाकर भस्म कर दिया । इसके बाद तेजस समुद्घात करके सात-आठ चरण पीछे हटा और श्रमण भगवान महावीर का वध करने के लिए अपने शरीर में से तेजोलेश्या निकाली । श्रमण भगवान महावीर स्वामी का बध करने के लिए मंखलीपुत्र गोशालक द्वारा अपने शरीर में से बाहर निकाली हुई तपोजन्य तेजोलेश्या, भगवान को क्षति पहुँचाने में समर्थ नहीं हुई । परन्तु वह गमनागमन करने लगी, फिर उसने प्रदक्षिण की और आकाश से ऊंची उछली, फिर आकाश से नीचे गिरती हुई वह तेजोलेश्या गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हो गई और उससे जलाने लगी । फलस्वरूप वह अपनी ही तेजोलेश्या से पराभव को प्राप्त हुआ । मंखलीपुत्र गोशालक ने भगवान का वध करने के लिए अपने शरीर में से जो तेजोलेश्या निकाली थी वह अंग, बंग आदि सोलह देशों को भस्म करने में समर्थ थी । परन्तु भगवान अनंत शक्ति सम्पन्न होने से भस्म करने में वह असमर्थ थी । 3 फलस्वरूप गोशालक स्वयं अपनी ही तेजोलेश्या से पराभव को प्राप्त होकर सात रात्रि के अन्त में पित्तज्वर से पीड़ित होकर मरण को प्राप्त हो गया । अस्तु विशिष्ट तपस्या करने से बालतपस्वी, अनगार तपस्वी आदि को तेजोलेश्या रूप तेजोलब्धि प्राप्त होती है । देवों में भी तेजोलेश्या लब्धि होती है । यह तेजोलेश्या प्रायोगिक द्रव्य लेश्या के तेजोलेश्या के भेद से भिन्न प्रतीत होती है । यह तेजोलेश्या दो प्रकार की होती है - ( १ ) शीतोष्ण तेजोलेश्या तथा (२) शीतल तेजोलेश्या । शीतोष्ण तेजोलेश्या ज्वाला- दाह पैदा करती है, भस्म करती है । आजकल के अणुत्रम की तरह इसमें अंग, बंग आदि १६ जनपदों को घात, वध तथा भस्म करने की शक्ति होती है । शीतल तेजोलेश्या में शीतोष्ण १. भग० श १५ । सू ७०, ६४, ६५ २. भग० श १५ । सू ७६ ३. भग० श १५ । सु १०५, १०७, ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy