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________________ ( 35 ) कारण है-चिन्ता, शोक, भय, क्रोध व संवेदनशीलता। संस्कृत साहित्य में चिन्ता को चिता के सदृश माना गया है। एक बार के क्रोध से नौ घटों की जीवनी शक्ति समाप्त हो जाती है। ममकार आत्मा का स्वभाव नहीं, विभाव है। जीवन में सफलता का एक मंत्र है एकाग्रता । महावीर का एक वाक्य है'अप्पणा सच्चमेसेज्जा" स्वयं सत्य की खोज करो। सारी समस्याओं की जड़ है-भावात्मक असंतुलन भी है। प्रशस्त लेश्या व प्रेक्षाध्यान से भावात्मक असंतुलन मिटाया जा सकता है। तेजो लेश्या की उत्पत्ति व उसका प्रयोग नख सहित वन्द की हुई मुट्ठी में जितने उड़द के बाकुले आवे उतने मात्र से और एक विकटाशय (चुल्लू ) भर पानी से निरन्तर छट्ट-छ? की तपस्या करने के साथ दोनों हाथ ऊचे रखकर यावत् आतापना लेने वाले पुरष को छः मास के अन्त में संक्षिप्त-विपुल-तेजोलेश्या प्राप्त होती है। नोट-तेजोलेश्या अप्रयोगकाल में संक्षिप्त होती है और प्रयोगकाल में विपुल होती है। इसलिए संक्षिप्त-विपुल-तेजोलेश्या-ऐसा कहा जाता है। एक बार छद्मस्थ अवस्था में भगवान महावीर गोशालक के साथ कूर्मग्राम नगर में आये । उस समय कूर्मग्राम के बाहर वैश्यायन नामक बालतपस्वी निरन्तर छट्ठ-छ? तप करता था और दोनों हाथ ऊचे रखकर सूर्य के सम्मुख खड़ा हो, आतापना ले रहा था। सूर्य की गर्मी से तपी हुई जुए उसके सिर से नीचे गिर रही थी और वह तपस्वी सर्वप्राण, भूत, जीव और सत्व की दया के लिए, पड़ी हुई उन जुओं को उठाकर पुनः शिर पर रख रहा था। ___ उस समय गोशालक ने वैश्यायन बालतपस्वी को तीन बार कहा कि तुम तत्त्वज्ञ हो या जुओं के शय्यातर हो फलस्वरूप अन्त में वैश्यायन बालतपस्वी कुपित हुआ यावत् क्रोध से धमधमायमान होकर आतापना भूमि से नीचे उतरा, फिर तेजस समुद्घात करके सात-आठ चरण पीछे हटा और गोशालक के वध के लिए अपने शरीर में से तेजोलेश्या बाहर निकाली। इसे देखकर भगवान महावीर ने गोशालक पर अनुकम्पा करके वैश्यायन वालतपस्वी की तेजोलेश्या का प्रतिसंहरण करने के लिए, शीतल तेजोलेश्या बाहर निकाली। भगवान महावीर की उस शीतल तेजोलेश्या से अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ और गोशालक के शरीर को किंचित् भी पीड़ा अथवा अवयव का छेद नहीं हुआ जानकर, वैश्यायन बाल-तपस्वी ने अपनी उष्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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