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________________ १८० लेश्या-कोश गमक–१ पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव हैं ( पज्जत्ता (त्त ) असन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएस उववज्जित्तए x x x तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तिनि लेस्साओ पन्नत्ताओ। तं जहा कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती हैं। -भग० श २४ उ १ । सू ७, १२ । पृ० ८१५ • इस विवेचन में निम्नलिखित नौ गमकों की अपेक्षा से वर्णन किया गया है। १-उत्पन्न होने योग्य जीव की औधिक स्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीव स्थान की औधिक स्थिति । २-उत्पन्न होने योग्य जीव की औधिक स्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीव स्थान की जघन्यकाल स्थिति । ३-उत्पन्न होने योग्य जीव की औधिक स्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीव स्थान की उत्कृष्टकालस्थिति । ४-उत्पन्न होने योग्य जीव की जघन्यकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीव स्थान की औधिक स्थिति । ५-उत्पन्न होने योग्य जीव की जघन्यकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य __ जीवस्थान की जघन्यकालस्थिति । ६-उत्पन्न होने योग्य जीव की जघन्यस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीव स्थान की उत्कृष्टक्वालस्थिति । ७-उत्पन्न होने योग्य जीव की उत्कृष्टकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की औधिक स्थिति । ८-उत्पन्न होने योग्य जीव की उत्कृष्टकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की जघन्यकालस्थिति । ६-उत्पन्न होने योग्य जीव की उत्कृष्टकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य __ जीवस्थान की उत्कृष्टकालस्थिति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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