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________________ १७० १७० लेश्या-कोश सूक्ष्मसंपराय चारित्र वाले संयति में एक शुक्ललेश्या होती है । ट-यथाख्यात चारित्र वाले संयति में अहक्खाए जहा सिणाए नवरं जइ सलेस्से होजा, एगाए सुक्कलेस्साए होजा। -भग० श २५ । उ ७ । सू ५०२ । पृ० ६६२ यथाख्यात चारित्र वाले सलेशी तथा अलेशी ( स्नातक की तरह ) दोनों होते हैं जो सलेशी होते हैं उनके एक शुक्ललेश्या होती है। '२६ विशिष्ट जीवों में १-अश्रुत्वा केवली होने वाले जीव के अवधि ज्ञान के प्राप्त करने की अवस्था में। असोच्चा णं भंते x x x (विभंगे अन्नाणे सम्मत्तपरिग्गहिए खिप्पामेव ओही परावत्तइ ) से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा! तिसु विशुद्धलेस्सासु होजा, तं जहा-तेउलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुक्कलेस्साए। --भग० श ६ । उ ३१ । सू ३३, ३४ । पृ० ४०७ अश्रत्वा केवली होने वाले जीव के विभंग अज्ञान की प्राप्ति के बाद मिथ्यात्व के पर्याय क्षीण होते-होते, सम्यग्दर्शन के पर्याय बढ़ते-बढ़ते विभंग अज्ञान सम्यक्त्वयुक्त होता है तथा अति शीघ्र अवधिज्ञान रूप परिवर्तित होता है। उस अवधिज्ञानी जीव के तीन विशुद्ध लेश्या होती है। २-श्रुत्वा केवली होने वाले जीव के अवधिज्ञान के प्राप्त करने की अवस्था में । ( सोच्चा णं भंते x x x से णं ते णं ओहीनाणेणं समुप्पन्नेणं xxx ) से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होजा ? गोयमा! छसु लेस्सासु होज्जा । तं जहा–कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए। -भग० श ६ । उ ३१ । सू ५५, ५६ । पृ० ४११ श्रत्वा केवली होने वाले जीव के अवधिज्ञान की प्राप्ति होने के बाद उस अवधिज्ञानी जीव के छः लेश्या होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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