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________________ १३८ लेश्या-कोश स्निग्ध तथा खर बादर पृथ्वीकाय में कृष्णादि चार लेश्या होती है । .११.४ अपर्याप्त बादर पृश्वीकाय में चार लेश्या होती है। ११.५ पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में तीन लेश्या होती है। '१२ अप्काय में (क) भवणवइवाणमंतर - पुढविआउवणस्सइकाइयाणं च चत्तारि लेस्साओ। -ठाण० स्था १ । उ १ । सू २०० । पृ० ४६६ (ख) आउवणस्सइकाइयाणवि एवं चेव ( जहा पुढविकाइयाणं)। -पण्ण० प १७ । उ २ । सू १३ । पृ० ४३८ (ग) आउक्काइया x x x एवं जो पुढविक्काइयाणं गमो सो चेव भाणियव्वो। -भग० श १७ । उ ३ । सू २१ । पृ० ७६३ (घ) असुरकुमाराणं चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा नीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा x x x एवं x x x आउवणस्सइकाइयाणं । -ठाण० स्था ४ । उ ३ । सू ३६६-७० । पृ० ६४० अप्काय के जीवों में चार लेश्या होती हैं । (ङ) असुरकुमाराणं तओ लेस्साओ संकिलिट्ठाओ पन्नत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काऊलेस्सा x x x एवं पुढविकाइयाणं आउवणस्सइकाइयाणं वि । -ठाण ० स्था ३ । उ १ । सू ५६-६१ । पृ० ५४५ अप्काय में तीन संक्लिष्ट लेश्या होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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