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________________ लेश्या-कोश १३७ (छ) ( पुढविकाइए णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उववजित्तए ) · सो चेव अप्पणा जहन्नकाल ट्ठिईओ जाओ x x x लेस्साओ तिन्नि । -भग० श २४ । उ १२ । सू १७१ । पृ० ८६६ पृथ्वीकाय में उत्पन्न होने योग्य जघन्य स्थितिधाले पृथ्वीका यिक जीबों में तीन लेश्या होती है। (ज) असुरकुमाराणं तओ लेसाओ संकिलिहाओ पन्नत्ताओ, तं जहा-कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा x x x एवं पुढविकाइयाणं । -ठाण० स्था ३ । उ १ । सू ५६, ६१ । पृ० ५४५ पृथ्वीकाय में तीन संक्लिष्ट लेश्या होती है, यया-कृष्ण, नील, कापोतलेश्या । ११.१ सूक्ष्म पृथ्वोकाय में (सुहुमपुढविकाइया) तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तिन्नि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहाकण्हलेस्सा, नीललेस्सा काऊलेस्सा । -जीवा० प्रति १ । सू १३ । पृ० १०६ सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीवों में तीन लेश्या होती है, यथा-कृष्ण, नील, कापोत लेश्या । ११.२ बादर पृथ्वीकाय में चार लेश्या होती है। ११.३ स्निग्ध तथा खर पृथ्वीकाय में ( सहबायर पुढविक्काइया ; खरबायर पुढविकाइया) चत्तारि लेस्साओ। -जीव० प्रति १ । सू १५ । पृ० १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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