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________________ लेश्या-कोश मूल - जंबुद्दीवे दीवे सूरिया xxx लेस्साभितावेणं मज्यंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति x x x ३२ टीका -- मध्यो मध्यमोऽन्तो विभागो गगनस्य दिवसस्य वा ; मध्यान्तः स यस्य मुहूर्त्तस्यास्ति स मध्यान्तिकः स चासौ मुहूर्त - श्चेति मध्यान्तिकमुहूर्तस्तत्र मूले च आसन्ने देशे द्रष्टृस्थानापेक्षया दूरे च व्यवहिते देशे द्रष्टुप्रतीत्यपेक्षया सूर्यो दृश्येते द्रष्टा हि मध्याह्न े उदयास्तमदर्शनापेक्षया सन्तं रविं पश्यति योजनशताष्टकेनैव तदा तस्य व्यवहितत्वान्मन्यते पुनरुदयास्तमयप्रतीत्यपेक्षया दूव्यवहितमिति x x x । लेसाभितावेणं ति । तेजसोऽभितापेन मध्याह्न ह्यासन्नतरत्वात्सूर्यस्तेजसा प्रतपति तेजः प्रतापे च दुर्दृश्यत्वेन प्रत्यासन्नोऽप्यसौ दूरप्रतीतिं जनयति । लेश्यासिताप—- लेश्या - सूर्य के आतप की प्रखरता । ठीक मध्याह्न के समय में सूर्य का तेज प्रखर रहता है, अतः द्रष्टा को उस समय का सूर्य, सूर्योदय और सूर्यास्त की अपेक्षा, समान दूरी पर रहते हुए भी, दूर दिखाई देता है । यह सूर्य का दूर दिखाई देना लेश्याभिताप के कारण होता है । यद्यपि सूर्योदय, सूर्यास्त और मध्याह्न - तीनों समय में समतल पृथ्वी से सूर्य की दूरी आठ सौ योजन की ही रहती है । -०४-६२ लेस्सावण्णचउरंसे ( लेश्यावर्णचतुरंश ) -- षट् ० पु १६ । पृ० ५७१ टीका --लेस्सा त्ति अणियोगद्दारे तत्थ इमाणि अट्ठ पदाणि । तं जहा - x x x लेस्सावण्णचउर से ६ × × × । सम्भवतः लेश्या अनुयोगद्वार के आठ पदों में लेश्यावर्णचतुरंश छठा पद है । इसमें लेश्या के वर्ण का चतुष्कोण - चार दृष्टिकोण से वर्णन किया गया हो । '०४.६३ लेस्सावण्णसमोदारो ( लेश्यावर्णसमवतार ) Jain Education International -- षट्० पु १६ । पृ० ५७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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