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________________ लेश्या-कोश गोचरी में गये हुए भिक्षु को ग्रहण किये जानेवाले आहार के सम्बन्ध मेंयह एषणीय है या अनेषणीय है-इस प्रकार की विचिकित्सा, जुगुप्सा या शंका उत्पन्न हो तथा उस शंका से सहित आहार ग्रहण करने में जिसकी आत्मा प्रवृत्त हुई हो-इस प्रकार की शंका-समापन्न आत्मा को असमाहृतलेश्य-अशुद्ध लेश्यावाला कहा जाता है, क्योंकि उद्गमादि दोष से दुष्ट चित्तश्रान्ति से उसका अन्तःकरण अशुद्ध लेश्या को प्राप्त हो जाता है। ०४.६ असुभलेस्सपरिणामा ( असुभलेश्यापरिणामक ) -पण्हा . मूल-xxx सक, जवण, सबर, x x x पावमइणो x x x जीवोवग्घायजीवी सण्णी य असण्णिणो य पजत्ता असुभलेस्सपरिणामा ए ए अण्णे य एवमाई करति पाणाइवायकरणं xxx | अशुभ लेश्याओं में परिणमन करने वाले अशुभलेश्यापरिणामी। कृष्ण, नील, कापोत अशुभ लेश्याए हैं।। शक, यवन, शबर आदि पापमति जीवोपघात से आजीविका चलाने वाले मनुष्य संज्ञी, असंजी, पर्याप्त अनेक प्रकार के जीवों की हिंसा करते हैं वे अशुभलेश्यापरिणामी होते हैं। .०४.१० अहम्मलेस्सा ( अधर्मलेश्या) -~-उत्त० अ ३४ । गा ५६ किण्हा नीला काऊ, तिनि वि एयाओ अहम्मलेस्साओ। एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइ उववजई ।। जिन लेश्याओं से जीव दुर्गति को प्राप्त करे वे अधर्मलेश्या कहलाती हैं। कृष्ण, नील और कापोत-ये तीनों अधर्मलेश्याएं हैं, क्योंकि ये दुर्गति में ले जानेवाली हैं। ०४.११ अंधकायलेस्सा ( अंधकाकलेश्य ) -घट ० खं ४ । सू १० । पु ११ । पृ० १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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