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________________ १० लेश्या-कोश ०४.६ अलेस्सा (अलेश्य ) -पप्ण० प १८ । सू १३४२ टीका---अलेश्यः अयोगिकेवली सिद्धश्च । अलेश्य अर्थात् लेश्या-रहित । अयोगिकेवली और सिद्ध जीव लेश्या-रहित होते हैं । ०४.७ अविसुद्धलेस्सतराग ( अविशुद्धलेश्यतरक) -भग० श १ । उ २ । प्र ७६ मूल-गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-पुवोववण्णगा य, पच्छोववण्णगा य, x x x तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते ण अविसुद्धलेस्सतरागा x x x | टीका-'पुत्वोववष्णगा य, पच्छोववण्णगा य' त्ति पूर्वोत्पन्नाः, प्रथमतरमुत्पन्नाः, तदन्ये तु पश्चादुत्पन्नाः, xx x पश्चादुत्पन्नानां च नारकाणामायुष्कादीनामल्पतराणां वेदितत्वाद् महाकर्मत्वम् । जो नारकी पश्चादुत्पन्नक है, उनकी नरकायु तथा अन्य कर्मों का वेदन अपेक्षाकृत कम हुआ रहता है तथा वेदन योग्य बचे हुए कर्म भी अधिक होते हैं, अतः पूर्वोत्पन्नक नारकी की अपेक्षा उनकी लेश्या अविशुद्ध होती है अतः उनको इस अपेक्षा से अविशुद्धलेश्यतरक कहा जाता है । ०४.८ असमाहडाए लेस्साए ( असमाहत लेश्या) -आया० श्रु २ । अ १ । उ ३ । सू ३६ मूल-असणं वा ४ एसणिज्जे सिया, अणेसणिज्जे सियावितिगिच्छसमावण्णेणं अप्पाणेणं असमाहडाए लेस्साए । शीलांक टीका-आहारजातं एषणीयमप्येवं शंकेत तद्यथा विचिकित्सा जुगुप्सा वा अनेषणीया शंका तया समापन्नका गृहीत आत्मा यस्य स तथा तेन शंकासमापन्नेन आत्मजा 'असमाहडाए' अशुद्धया लेश्यया उद्गमादिदोषदुष्टमिदमित्येवं चित्तविप्लुत्या अशुद्धलेश्यान्तःकरणरूपोपजायते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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