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________________ ( 134 ) २-आदि सहित-अंत सहित-प्रतिपाती सम्यग्दृष्टि की अपेक्षा । ३-आदि रहित-अंत सहित-मोक्षगामी भव्यता अपेक्षा । ४-आदि सहित-अंत रहित-यह भंग शून्य होता है। यद्यपि एक सिद्ध की अपेक्षा-आदि सहित अंत रहित भंग बनता है। मुनि गुण वर्णन के प्रसंग में निरूपित निर्जरा के बारह भेदों में आर्त और रौद्र ध्यान का भी निरूपण किया गया है। वास्तव में मुनि के गुण रूप में धर्म और शुक्ल ध्यान होते हैं, फिर भी ध्यान शब्द के आधार पर समुच्चयदृष्टि से आर्त और रौद्र ध्यान का भी निरूपण किया गया है। इसी प्रकार औदयिक भाव के तैंतीस बोलों में शुभ लेश्या आदि बोलों का प्रतिपादन किया गया है । वे धर्म लेश्यादि क्षायिक-क्षयोपशमिक भाव में है। उक्त दृष्टि से दोनों का एक साथ प्रतिपादित है । ___ अभ्याख्यान एक पाप है। सीता ने अपने पूर्व भव में वेगवती ने सुदर्शन मुनि पर कलंक लगाया कि यह व्यभिचारी है फलस्वरूप जिहवा मौन हो गई थी। उत्तराध्ययन ३४ । १ में छओं लेश्याओं को कर्मलेश्या कहा गया है, इस दृष्टि से शुभलेश्या कर्मलेश्या भी है। अस्तु हमारी पूरी कल्पना का चित्रण परिस्फुटित होकर विद्वानों के समक्ष सम्यग प्रकार आ सकेगा तब हमारी योजना पूरी तरह सफल मानी जायेगी। दशवकालिक के रचयिता चतुर्दश पूर्वधर शयम्भवसूरि थे। अपने पुत्र 'मनक' की आयु को अल्प (छः मास मात्र) जानकर उनके निमित्त यह ग्रन्थ विकाल ( विगत पौरुषी ) में रचा गया है । कहा है छ मासेहि अहि (ही) अं अज्झयणमिणं तु अज्जमणगेणं । छम्मासा परिआओ अह कालगओ समाहीए । -दशव० नि गा ३७० अतः इसका नाम दशवकालिक प्रसिद्ध हुआ। उसकी टीका में हरिभद्रसूरि ने शयम्भवसूरि को चतुर्दशपूर्वविद् कहा है। १. झीणीचरचा ढाल १३ । गा ४४, ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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