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________________ ( 118 ) . कर्मों के दो रूप बनते हैं-कर्मसार और कर्मकल्क ( असार )। यदि कर्मों के असार भाव को निष्पन्द माने तो तर्क होता है कि असार ( मुक्त ) कर्म प्रकृति लेश्या के उत्कृष्ट अनुभाग बंध में कारण कैसे बनेगी। कर्मों के सारभाव को निष्पंद कहें तो किस कर्म के सारभाव को ? यदि आठों ही कर्मों को मानने तो आगमों में जहाँ कर्मों के विपाक बताये गये हैं वहाँ किसी भी कर्म का लेश्या का रूप विपाक नहीं बताया गया है। अतः यह योग परिणाम लेश्या को ही यथार्थ जानना चाहिए। योगशास्त्र में आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है या 'पूर्वमप्राप्तधर्माऽपि परमानन्दनन्दिता । योगप्रभावतः प्राप्ता मरूदेवी परंपदम् ॥" --प्रकाश १ । सू ११ टीका-मरुदेवा हि स्वामिनी आसंसारं त्रसत्वमात्रमपि नानुभूतवती किं पुनर्मानुषत्वं तथापि योगबलसमृद्ध न शुक्लध्यानाग्निना चिरसंचितानि कर्मेन्धनानि भस्मसात्कृतवती । यदाह-जह एगा मरुदेवा अच्चंतं थावरा सिद्धा x x x ननुजन्मान्तरेऽपि अकृतक्रूरकर्माणां मरूदेवदीना योगबलेन युक्तः कर्मक्षया ।। ___ अर्थात् पहले किसी भी जन्म में धर्म सम्पति प्राप्त न करने पर भी योग के प्रभाव से ( प्रशस्तलेश्यादि ) मुक्ति ( प्रसन्न ) मरदेवी माता ने परमपद मोक्ष प्राप्त किया है। मरदेवी माता ने पूर्व किसी भी जन्म में सद्धर्म प्राप्त नहीं किया था और न त्रसयो नि प्राप्त की थी और न मनुष्यत्व का अनुभव किया था । केवल मादेवी के भव में योगबल से मिथ्यात्व से सम्यक्त्व को प्राप्त कर, फिर समृद्ध शुक्लध्यानरूपी महानल को दीर्घकाल संचित कर्मरूपी इधन को जलाकर भस्म कर दिया था। तन्वतः प्रशस्त लेश्या-प्रशस्त अध्यवसाय, शुभयोग में मरदेवी माता ने मिथ्यात्व से सम्यक्त्व को प्राप्त किया। प्रशस्त लेश्यादि के द्वारा अप्रमत्त भाव में १. उत्त० अ ३४ । टीका-शान्तिसूरि २. षट० १, १ । पु २ । पृ० ४२३ से ४२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016038
Book TitleLeshya kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year2001
Total Pages740
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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