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________________ लेश्या-कोश '४७ भावलेश्या के लक्षण ४७.१ कृष्णलेश्या के लक्षण पंचासवप्पवत्तो, तीहिं अगुत्तो छसुं अविरओ य । तिव्वारंभपरिणओ, खुद्दो साहसिओ नरो ।। निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो अजिईदिओ। एयजोगसमाउत्तो, कण्हलेसं तु परिणमे ॥ -उत्त० अ० ३४ । गा २१, २२ । १०४६ पाँचों आश्रवों में प्रवृत्त, तीन गुप्तियों से अगुप्त, छः काय की हिंसा से अविरत, तीव्र आरम्भ में परिणत, क्षुद्र, साहसिक, निर्दयी, नृशंस, अजितेन्द्रिय पुरुष कृष्णलेश्या के परिणाम वाला होता है। ४७.२ नीललेश्या के लक्षण इस्साअमरिसअतवो, अविज्जमाया अहीरिया य . गेही पओसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए* ॥ आरंभाओ अविरओ खुद्दो साहसिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो, नीललेसं तु परिणमे ।। - उत्त० अ ३४ । गा २३, २४ । पृ० १०४६-४७ ईर्ष्यालु, कदाग्रही, अतपस्वी, अज्ञानी, मायावी, निर्लज्ज, विषयी, द्वेषी, रसलोलप, आरम्भी, अविरत, क्षुद्र, साहसिक पुरुष नीललेश्या के परिणामवाला होता है। ४७.३ कापोतलेश्या के लक्षण वंके वंकसमायारे, नियडिल्ले अणुज्जुए । पलिचग ओवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए । उप्फालगदुहवाई य, तेणे यावि य मच्छरी । एयजोगसमाउत्तो, काऊलेसं तु परिणमे ॥ -उत्त० अ ३४ । गा २५, २६ । पृ० १०४७ वचन से वक्र, विषम आचरणवाला, कपटी, असरल, अपने दोषों को ढाँकनेवाला, परिग्रही, मिथ्या दृष्टि, अनार्य, मर्मभेदक, दुष्ट वचन बोलने वाला, चोर, मत्सर स्वभाववाला पुरुष कापोतलेश्या के परिणामवाला होता है । * पाठान्तर-पमत्ते रसलोलुए सायगवेसए य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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