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________________ बार-बार पढ़कर नोंध करनी पड़ी। इसी तरह जिस विषय का भी अध्ययन किया हमें सभी ग्रन्थों का आद्योपांत अवलोकन करना पड़ा। इससे हमें अनुमान हुआ कि विद्वत् वर्ग जैन दर्शन के गंभीर अध्ययन से क्यों सकुचाते हैं। ग्रन्थों को बार-बार आद्योपांत पढ़ने की समस्या को हल करने के लिये हमने यह ठीक किया कि आगम ग्रन्थों से जैन दर्शन के महत्त्वपूर्ण विषयों का विषयानुसार पाठ संकलन एक साथ ही कर लिया जाय। इससे जैनदर्शन के विशिष्ट विषयों का अध्ययन करने में सुविधा रहेगी। ऐसा संकलन निज के अध्ययन के काम तो आयेगा ही शोधकर्ता तथा अन्य जिज्ञासु विद्वद्वर्ग के भी काम आ सकता है । किन ग्रन्थों से पाठ संकलन किया जाय इस विषय पर विचार कर हमने निर्णय किया कि एक सीमा करनी आवश्यक है अन्यथा आगम व सिद्धांत ग्रन्थों की बहुलता के कारण यह कार्य असम्भव सा हो जायेगा । सर्वप्रथम हमने पाठ संकलन को ३२ श्वेताम्बर आगमों तथा तत्त्वार्थसूत्र में सीमाबद्ध रखना उचित समझा। ऐसा हमने किसी साम्प्रदायिक भावना से नहीं बल्कि आगम व सिद्धांत ग्रन्थों की बहुलता तथा कार्य की विशालता के कारण ही किया है । श्वेताम्बर आगम ग्रन्थों से संकलन कर लेने के पश्चात् दिगम्बर सिद्धांत ग्रन्थों से भी संकलन करने का हमारा विचार है । अपनी अस्वस्थता तथा कार्य की विशालता को देखते हुए इस पाठ - संकलन के कार्य में हमने बंधु श्री श्रीचन्द चोरड़िया का सहयोग चाहा। इसके लिये वे राजी हो गये । सर्व प्रथम हमने विशिष्ट पारिभाषिक, दार्शनिक तथा आध्यात्मिक विषयों की सूची बनाई । विषय संख्या १००० से भी अधिक हो गई। इन विषयों के सुष्ठु वर्गीकरण के लिए हमने आधुनिक सार्वभौमिक वर्गीकरण का अध्ययन किया। तत्पश्चात् बहुत कुछ इसी पद्धति का अनुसरण करते हुए हमने सम्पूर्ण जैन वाङमय को १०० वर्गों में विभक्त कर के मूल विषयों के वर्गीकरण की एक रूपरेखा ( देखें पृ० 14 ) तैयार की। यह रूपरेखा कोई अंतिम नहीं है । परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा भी इसमें रह सकती है। मूल विषयों में से भी अनेकों के उपविषयों की सूची भी हमने तैयार की है । उनमें से जीव- परिणाम ( विषयांकन ०४ ) की उपविषय सूची पृ० 17 पर दी गई है । जीव परिणाम की यह उपसूची भी परिवर्तन, परिवर्द्धन व संशोधन की अपेक्षा रख सकती है । विद्वर्ग से निवेदन है कि वे इन विषय-सूचियों का गहरा अध्ययन करें तथा इनमें परिवर्तन, परिवर्द्धन व संशोधन सम्बन्धी अथवा अपने अन्य बहुमूल्य सुझाव भेज कर हमें अनुगृहीत करें । पाठ - संकलन का कार्य पहले विभिन्न ग्रन्थों से लिख-लिखकर प्रारंभ किया गया । [ 8 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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