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________________ प्रस्तावना जैन दर्शन सूक्ष्म और गहन है तथा मूल सिद्धान्त ग्रन्थों में इसका क्रमबद्ध विषयानुक्रम विवेचन नहीं होने के कारण इसके अध्ययन में तथा इसे समझने में कठिनाई होती है । अनेक विषयों के विवेचन अपूर्ण-अधूरे हैं। अतः अनेक स्थल इस कारण से भी समझ में नहीं आते हैं। अर्थ बोध की इस दुर्गमता के कारण जैन-अजैन दोनों प्रकार के विद्वान् जैन दर्शन के अध्ययन में सकुचाते हैं। क्रमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन का अभाव जैन दर्शन के अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा उपस्थित करता है-ऐसा हमारा अनुभव है । ___ कुछ वर्ष पहले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक अजैन प्राध्यापक मिले। उन्होंने बतलाया कि वे विश्वविद्यालय के अन्तर्गत 'नरक' विषय पर एक शोध महानिबंध लिख रहे हैं। विभिन्न धर्मों और दर्शनों में नरक और नरकवासी जीवों के सम्बन्ध में क्या वर्णन है, इसकी वे खोज कर रहे हैं तथा जैन दर्शन में इसके सम्बन्ध में क्या विवेचन किया गया है, इसकी जानकारी के लिए आये हैं। उन्होंने पूछा कि किस ग्रंथ में इस विषय का वर्णन प्राप्त होगा। हमें सखेद कहना पड़ा कि किसी एक ग्रंथ में एक स्थान पर पूरा वर्णन मिलना कठिन हैं। हमने उनको पण्णवणा, भगवई तथा जीवाजीवाभिगम-इन तीन ग्रंथों के नाम बताए तथा कहा कि इन ग्रंथों में नरक और नरकवासियों के संबंध में यथेष्ट सामग्री मिल जायगी लेकिन क्रमबद्ध विवेचन तथा विस्तृत विषय सूची के अभाव में इन तीनों ग्रंथों का आद्योपान्त अवलोकन करना आवश्यक है। ___ इसी तरह एक विदेशी प्राध्यापक पूना विश्वविद्यालय में जैन दर्शन के 'लेश्या' विषय पर शोध करने के लिए आये थे। उनके सामने भी यही समस्या थी। उन्हें भी ऐसी कोई एक पुस्तक नहीं मिली जिसमें लेश्या पर क्रमबद्ध और विस्तृत विवेचन हो। उनको भी अनेक आगम और सिद्धांत ग्रन्थों को टटोलना पड़ा यद्यपि पण्णवण्णा तथा उत्तरज्झयण में लेश्या पर अलग अध्ययन है। जब हमने 'पुद्गल' का अध्ययन प्रारंभ किया तो हमारे सामने भी यही समस्या आयी। आगम और सिद्धांत ग्रन्थों से पाठों का संकलन करके इस समस्या का हमने आंशिक समाधान किया। इस प्रकार जब-जब हमने जैन दर्शन के अन्यान्य विषयों का अध्ययन प्रारंभ किया तब-तब हमें सभी आगम तथा अनेक सिद्धांत ग्रन्थों को सम्पूर्ण पढ़कर पाठ-संकलन करने पड़े। पुराने प्रकाशनों में विषयसूची तथा शब्दसूची नहीं होने के कारण पूरे ग्रन्थों को [ 7 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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