SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या - कोश ३७ उट्ठाणे-कम्मे - बले-वीरिए - पुरिसक्कारपरक्कमे, नेरइयत्ते असुरकुमारत्ते जाव वैमाणियत्ते, णाणावर णिज्जे जाव अन्तराइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी-मिच्छादिट्ठी'सम्ममिच्छादिट्ठी, चक्खुदंसणे - अचक्खुदंसणे-ओहीदंसणे - केवलदंसणे, आभिणिबोहियणाणे जाव विभंगणाणे, आहारसन्ना - भयसन्ना - मैथूनसन्ना - परिग्राहसन्ना, ओरालिय सरीरे वे व्विएसरीरे आहारगसरीरे तेयएसरीरे कम्मएसरीरे, मणजोगेवइजोगे-कायजोगे, सागारोवओगे अणागारोवओगे जे यावन्ने तह पगारा सव्वे ते roणत्थ आया परिणमंति ? हंता गोयमा ! पाणाइवाए जाव सव्वे ते णण्णत्थ आयाए परिणमति । -भग० श २० । उ ३ । प्र १ । पृ० ७६२ प्राणातिपातादि १८ पाप, प्राणातिपातादि १८ पापों का विरमण, औत्पात्तिकी आदि ४ बुद्धि, अवग्रह यावत् धारणा, उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषाकारपराक्रम, नारकादि २४ दण्डक अवस्था, ज्ञानावरणीय आदि कर्म, कृष्णादि छहलेश्या, तीन दृष्टि, चार दर्शन, पांच तीन अज्ञान, चार संज्ञा, पाँच शरीर, तीन योग, साकार उपयोग, अनाकार उपयोग इत्यादि अन्य इसी प्रकार के सर्व आत्मा के सिवाय अन्यत्र परिणत नहीं होते हैं । यह पाठ द्रव्य और भाव दोनों लेश्याओं में लागू होना चाहिये । ज्ञान, • २१ द्रव्यलेश्या और स्थान (क) केवइया णं भंते ! कण्हलेस्सा ठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा कण्हलेस्सा ठाणा पन्नत्ता एवं जाव सुक्कलेस्सा संखाईया 1 (ख) अस्संखिज्जाणोसप्पिणीण, उस्सप्पिणीण जे समया । लोगा, लेसाण हवन्ति ठाणाई ॥ - उत्त० अ ३४ | गां ३३ | पृ० १०४७ कृष्णलेण्या यावत् शुक्ललेश्या के असंख्यात स्थान होते हैं । असंख्यात् अवसर्पिणी तथा उत्सर्पिणी में जितने समय होते हैं अथवा असंख्यात् लोकाकाश के जितने प्रदेश होते हैं उतने लेश्याओं के स्थान होते हैं । - पण्ण० प १७ | उ ४ । सू ५० | पृ० ४४६ Jain Education International (ग) लेस्सट्ठाणे संकि लिस्समाणेसु २ कण्हलेस्सं परिणमइ २ त्ता कण्हलेस्से सु इस उववज्र्ज्जति x x x x x - लेस्सट्ठाणेसु संकिलिस्समाणेसु वा विसुज्झमाणेसु नीलस्सं परिणमइ २ त्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जन्ति । - भग० श १३ । उ १ । प्र १६ तथा २० का उत्तर । पृ० ६७६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy