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________________ लेश्या - कोश दुविहा उभावलेस्सा, विसुद्धलेस्सा तहेव अविसुद्धा । दुविहा विसुद्धलेसा, उवसमखइआ कसायाणं ||४०|| अविसुद्धभावलेसा, सा दुविहा नियमसो उ नायव्वा । पिज्जमि अ दोसम्म अ, अहिगारो कम्मलेस्साए ||५४१|| नो-कम्मदव्वलेसा, पओगसा वीससाउ नायव्वा । भावे उदओ भणिओ, छण्हं लेसाण अज्झयेण निक्खेवो, चउक्कओ दुविह होइ दव्वम्मि | आगम नोआगतो, नो आगमतो यं तं तिविहं । ५४३ ॥ जीवेसु ॥ ५४२ || जाणगभविय सरीरं, अज्झप्परसाणयणं, पोत्यगइ | भावमज्झयणं ||५४४॥ - उत्त० अ ३४ । निर्युक्तिगाथा तव्वइरित्तं च नायव्वं लेश्या के दो विवेचन-आगम से, नोआगम से । नोआगम विवेचन तीन प्रकार का होता है । लेश्या शब्द का विवेचन निक्षेपों की अपेक्षा चार प्रकार का है, यथा-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । Jain Education International १६ लेश्या दो प्रकार की है-- जाणगभविय शरीरी तथा तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के दो भेद हैं—कार्मण तथा नोकार्मण । नो कार्मण के दो भेद हैं— जीव लेश्या तथा अजीव लेश्या । जीव लेश्या के दो भेद हैं-भवसिद्धिक तथा अभवसिद्धिक । औदारिक, औदारिकमिश्र आदि की अपेक्षा लेश्या के सात भेद हैं। या कृष्णादि ६ तथा संयोगजा सात भेद हो सकते हैं । अजीव नोकर्म द्रव्यलेश्या के दश भेद हैं, यथा- - चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारा लेश्या, आभरण, छाया, दर्पण, मणि, कांकणी लेश्या । द्रव्य कर्म लेश्या के छ भेद हैं, यथा-कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म तथा शुक्ल । भाव लेश्या के दो भेद हैं- विशुद्ध तथा अविशुद्ध । विशुद्ध लेश्या के दो भेद हैं-उपशम कषाय लेश्या तथा क्षायिक कषाय लेश्या । अविशुद्ध लेश्या के दो भेद हैं- रागविषय कषाय लेश्या तथा द्वेष विषय कषाय लेश्या । नोकर्म द्रव्य लेश्या के दो भेद भी होते हैं-- प्रायोगिक तथा विस्रसा । भाव की अपेक्षा जीव के उदय भाव में छहों लेश्या होती हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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