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________________ लेश्या-कोश भन्ते ! लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तओ लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तंजहा--तेऊलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा । -ठाण० स्था ३ । उ ४। सू २२१ । ( उत्तर केवल ) पृ० २२० __ - पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४७ । पृ० ४४८ प्रथम तीन लेश्या दुर्गन्धवाली तथा पश्चात् की तीन लेश्या सुगन्धवाली हैं। (२) मनोज्ञ-अमनोज्ञ. (तओ) अमणुन्नाओ, (तओ) मनुणुन्नाओ। -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० प्रथम तीन लेश्या ( रस की अपेक्षा ) अमनोज्ञ तथा पश्चात् की तीन मनोज्ञ हैं। (३) शीतरूक्ष-उष्णस्निग्ध. (तओ) सीयलुक्खाओ, (तओ) निद्धण्हाओ। -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४७ । पृ० ६४६ प्रथम तीन लेश्या ( स्पर्श की अपेक्षा) शीतरूक्ष तथा पश्चात् की तीन उष्ण स्निग्ध हैं। (४) विशुद्ध-अविशुद्ध. एवं तओ अविशुद्धाओ, तओ विशुद्धाओ। -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४७ । पृ० ४४६ प्रथम तीन लेश्या ( वर्ण की अपेक्षा ) अविशुद्ध, पश्चात् की तीन लेश्या विशुद्ध वर्णवाली हैं। (ख) भावलेश्या के(१) धर्म-अधर्म. कण्हा नीला काऊ, तिण्णि वि एयावो अहम्मलेस्साओ। तेऊ पम्हा सुक्का, तिणि वि एयावो धम्मलेसाओ। -उत्त० अ ३४ । गा ५६, ५७ पूर्वार्ध । पृ० १०४८ प्रथम तीन अधर्म लेश्या हैं तथा पश्चात् की तीन धर्म लेश्या हैं। (२) प्रशस्त–अप्रशस्त. तओ अप्पसत्थाओ, तओ पसत्थाओ। -ठाण. स्था ३ । उ ४ । सू २२१ । पृ० २२० -पण्ण० प १७ । उ ४ । स ४७ पृ० ४४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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