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________________ लेश्या-कोश नीलवण्णेणं साहिज्जई, काऊलेस्सा काललोहिएणं वण्णेणं साहिज्जइ, तेउलेस्सा लोहियेणं वण्णेणं साहिज्जइ, पालेस्सा हालिइएणं वण्णेणं साहिज्जइ, सुकलेस्सा सुकिल्लएणं वण्णेणं साहिज्जइ। -पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४० (पृ० ४४७ ) '३ पुदगल भी वर्ण, गंध, रस, स्पर्शी है अतः द्रव्यलेश्या पुद्गल है । पोग्गलत्थिकाएणं भन्ते ! कइ वण्णे, कइ गन्धे, कइ रसे, कइ फासे पन्नते ? गोयमा ! पंच वणे, पंच रसे, दुगंधे, अट्टफासे। -भग• श २ । उ० १० । प्र ५७ ( पृ० ४३४ ) ."४ द्रव्यलेश्या पुद्गल है अतः पुद्गल के गुण भी द्रव्यलेश्या में है। पोग्गलत्थिकाए रूवी, अजीवे, सासए, अवट्टिए, लोग दव्वे, से समासओ पंचविहे पन्नत्ते-तंजहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। १-दव्यओ णं पोग्गलस्थिकाए अणंताई दवाई, २-खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते, ३-कालओ न कयाइ, न आसी, जाव णिच्चे, ४--भावओ वण्णमंते, गंध-रस-फासमन्ते । ५-गुणओ गहण गुणे। -भग० श २ । उ १० । प्र ५७ (पृ० ४३४) .५ द्रव्यलेश्या अनन्त प्रदेशी है। कण्हलेस्साणं भन्ते! कइ पएसिया पन्नत्ता ? गोयमा ! अणंत पएसिया पन्नत्ता, एवं जाव सुक्कलेस्सा। पण्ण० प १७ । उ० ४ । सू ४६ (पृ० ४४६ ) '६ द्रव्यलेश्या असंख्यात् प्रदेशी क्षेत्र-अवगाह करती है। कण्हलेस्साणं भन्ते! कइ पएसोगाढा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जपएसोगाढा पन्नत्ता। पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४६ ( पृ० ४४६ ) •७ द्रव्यलेश्या की अनन्त वर्गणा होती है। कण्हलेस्साएणं भन्ते ! केवइयाओ वग्गणाओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! अणंताओ वग्गणाओ पन्नत्ताओ एवं जाव सुक्कलेस्साए । पण्ण० प १७ । उ ४ । सू ४६ ( पृ० ४४६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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