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________________ २६६ लेश्या-कोश उववज्जेज्जा, अत्थेगइए नो उववज्जेज्जा । से केण?णं ? गोयमा ! से णं सन्निपंचिदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए तहारुवस्स समणस्स वा, माहणस्स वा अंतिए xxx तिव्वधम्माणुरागरत्ते, से गं जीवे धम्मकामए xxx मोक्खकामए xxx पुण्णसग्गमोक्खपिवासिए तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदझवसिए xxx एयंसि गं अंतरंसि कालं करेज्ज देवलोगेसु उववज्जइ। . -भग० श १ । उ ७ । प्र २५६-५७ । पृ० ४०७ सर्व पर्याप्तियों में पूर्णता को प्राप्त गर्भस्थ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव तथारूप श्रमण-माहण के पास आर्यधर्म के एक भी वचन को सुनकर आदि, धर्म का कामी होकर यावत् मोक्ष का पिपासु होकर, उस तरह के चित्तवाला, मनवाला, लेश्यावाला, अध्यवसायवाला होकर गर्भस्थ जीव यदि उस काल में मरण को प्राप्त हो तो वह देवलोक में उत्पन्न होता है। __ गर्भस्थ जीव गर्भ में मरकर यदि देवलोक में उत्पन्न हो तो मरणकाल में उस जीव के लेश्या परिणाम भी तदुपयुक्त होते हैं । 'EE १० लेश्या में विचरण करता हुआ जीव और जीवात्मा : __ अन्नउत्थियाणं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परुवंति–एवं खलु पाणाइवाए, मुसावाए, जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया, पाणाइवाय वेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया ; उप्पत्तियाए जाव परिणामियाए वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया ; उग्गहे ईहा अवाए धारणाए वट्टमाणस्स जाव जीवाया ; उट्ठाणे जाव परक्कमे वट्टमाणस्स जाव जीवाया ; नेरइयत्ते, तिरिक्खमणुस्सदेवत्ते वट्ठमाणस्स जाव जीवाया; नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए वट्टमाणस्स जाव जीवाया, एवं कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए ; सम्मदिट्ठीए ३, एवं चक्खुदंसणे ४, आभिणिबोहियनाणे ५, मइअन्नाणे ३, आहारसन्नाए ४ एवं ओरालियसरीरे ५ एवं मणजोए ३ सागारोवओगे अणागारोवओगे वट्टमाणस्स अण्णे जीवे अण्णे जीवाया ; से कहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! जंणं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति, जाव मिच्छते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-एवं खलु पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स सच्चेव जीवे सच्चेव जीवाया जाव अणागारोवओगे वट्टमाणस्स सच्चव जीवे सच्चव जीवाया। -भग० श० १७ । उ २ । प्रह। पृ० ७५६ प्राणातिपातादि १८ पापों में, प्राणातिपातविरमणादि १८ पाप-विरमणों में, औत्पातिकी आदि ४ बुद्धियों में, अवग्रह-ईहा-अवाय-धारणा में, उत्थान यावत् पुरुषाकार पराक्रम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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