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________________ लेश्या-कोश जो लेश्या मन्द तो है, अति उष्ण स्वभाववाली आतपरुपा नहीं है उसे मन्दातप लेश्या कहा गया है । इस लेश्या में रश्मियों का संघात होता है। चित्रान्तर लेश्या प्रकाशरूपा होती है । चन्द्रमा की लेश्या सूर्यान्तर तथा सूर्य की लेश्या चन्द्रमान्तर होकर जो लेश्या बनती है वह चित्रान्तर लेश्या कहलाती है। चित्रालेश्या चन्द्रमा की शीत रश्मि तथा सूर्य की उष्ण रश्मि के मिश्रण से बनती है। चन्द्र तथा सूर्य की लेश्याएँ प्रत्येक लाख योजन विस्तृत होती हैं तथा ऋजु ( सीधी) श्रेणी में व्यवस्थित एक दूसरे में पचास हजार योजन परस्पर में अवगाहित होती हैं। वहाँ चन्द्र की प्रभा सूर्य की प्रभा से मिश्रित होती है तथा सूर्य की प्रभा चन्द्र की प्रभा से मिश्रित होती है। इसीलिए उनकी लेश्या परस्पर में अवगाहित होती है ऐसा कहा गया है। और इस प्रकार शीर्ष स्थान में सदैव स्थित चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र-तारा की लेश्याएँ परस्पर में अवगाहित होकर उस मनुष्य क्षेत्र के बाहर अपने-अपने निकटवर्ती प्रदेश को उद्द्योतित, अवभासित, आतप्त तथा प्रकाशित करती हैं। 'BE गर्भ में मरनेवाले जीव की गति में लेश्या का योग :'EE १ नरकगति में : जीवे णं भंते ! गभगए समाणे नेरइएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा! अत्थगइए उववज्जेजा, अत्थगइए नो उववज्जज्जा। से केण?णं ? गोयमा ! से णं सन्निपंचिदिए सव्वाहिं पज्जत्तीहिं पज्जत्तए वीरियलद्धीए xxx संगाम संगामेइ । सेणं जीवे अत्थकामए, रज्जकामए xxx कामपिवासिए ; तच्चित्ते, तम्मणे, तल्लेसे तदझवसिए xxx एयंसि णं अंतरंसि कालं करेज्ज नेरइएसु उववज्जइ । -भग० श० १ । उ ७ । प्र २५४-५५ । पृ० ४०६-७ सर्व पर्याप्तियों में पूर्णता को प्राप्त गर्भस्थ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव वीर्य लब्धि आदि द्वारा चतुरंगिणी सेना की विकुर्वणा करके शत्रु की सेना के साथ संग्राम करता हुआ, धन का कामी, राज्य का कामी यावत् काम का पिपासु जीव ; उस तरह के चित्तवाला, मन वाला, लेश्या वाला, अध्यवसाय वाला होकर वह गर्भस्थ जीव यदि उस काल में मरण को प्राप्त हो तो नरक में उत्पन्न होता है। ____ गर्भस्थ जीव गर्भ में मरकर यदि नरक में उत्पन्न हो तो मरणकाल में उस जीव के लेश्या परिणाम भी तदुपयुक्त होते हैं । HERE२ देवगति में : जीवे गं भंते ! गभगए समाणे देवलोगेसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! अत्थेमइए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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