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________________ लेश्या-कोश "तीन विशुद्ध लेश्या में कल्प को स्वीकार करता है। लेकिन तीन अविशुद्ध लेश्या में कल्प को स्वीकार नहीं करता है। यदि कल्प को पूर्व में स्वीकार किया हुआ हो तो सर्व लेश्याओं में कथंचित् प्रवर्तन करता है लेकिन अत्यन्त संक्लिष्ट अविशुद्ध लेश्या में प्रवर्तन नहीं करता है। अविशुद्ध लेश्या में प्रवर्तन करता है तो थोड़े समय के लिए करता है ; क्योंकि कर्म की गति विचित्र होती है। · फिर भी वीर्य-सामर्थ्य फल देता है।" ६६६ लेसणाबंध : टीकाकारों ने 'लिश्यते-श्लिष्यते इति लेश्या' इस प्रकार लेश्या की व्याख्या की है । भगवतीसूत्र में 'अल्लियावणबंध' के भेदों में 'लेसणाबंध' एक भेद बताया गया है। आत्मप्रदेशों के साथ लेश्याद्रव्यों का किस प्रकार का बंध होता है सम्भवतः इसकी भावना 'लेसणाबंध' से हो सके। से किं तं लेसणाबंधे ? लेसणाबंधे जन्नं कुड्डाणं कोट्टिमाणं खंभाणं पासायणं कट्ठाणं चम्माणं घडाणं पडाणं कडाणं छुहाचिक्खिल्लसिलेसलक्खमहुसित्थमाइएहिं लेसणएहिं बंधे समुप्पज्जइ जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं संखेज्जं कालं, सेत्तं लेसणाबंधे। -भग० श ८। उ ६ । प्र १३ । पृ० ५६१-६२ टीका–श्लेषणा-श्लथद्रव्येण द्रव्ययोः सम्बन्धनं तद्पो यो बन्धः स तथा । शिखर का, कुट्टिम का, स्तम्भ का, प्रासाद का, लकड़ी का, चमड़े का, घड़े का, वस्त्र का, कड़ी का, खड़िया का, पंक का श्लेष-वज्रलेप का, लाख का, मोम आदि द्रव्यों का या इन द्रव्यों द्वारा श्लेषणाबंध होता है। यह बंध जघन्य में अंतर्महूर्त तथा उत्कृष्ट में संख्यात काल तक स्थायी रहता है। "EE ७ नारकी और देवता की द्रव्य-लेश्या : से नूणं भंते ! कण्हलेसा नीललेसं पप्प णो तारूवत्ताए जाव णो ताफासत्ताए भुज्जो भुजो परिणमइ ? हंता गोयमा! कण्हलेसा नीललेस्सं पप्प णो तारूवत्ताए, णो तावन्नत्ताए, णो तागंधत्ताए, णो तारसत्ताए, णो ताफासत्ताए भुजो २ परिणमइ । से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! आगारभावमायाए वा से सिया, पलिभागभावमायाए वा से सिया । कण्हलेस्सा णं सा, णो खलु नीललेसा तत्थ गया ओसक्का उस्सकदवा, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चय--- 'कण्हलेसा नीललेसं पप्प णो तारूवत्ताए जाव भुजो २ परिणमइ । से नूणं भंते ! नीललेसा काऊलेसं पप्प णो तारूवत्ताए जाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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