SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ लेश्या-कोश लेश्याओं के अनुभावों को जानकर संयमी मुनि अप्रशस्त लेश्याओं को छोड़कर प्रशस्त लेश्या में अवस्थित हो-विचरे। लेसासु छसु काएसु, छक्के आहारकारणे। जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ --उत्त० अ ३१ । गा ८ । पृ० १०३८ जो साधु छः लेश्या, छः काय तथा आहार करने के छः कारणों में सदा सावधानी बरतता है वह भव भ्रमण नहीं करता। साधु को छ लेश्याओं में कैसी सावधानी बरतनी चाहिए-यह एक विचारणीय विषय है। '६६ २ देवता ओर उनकी दिव्य लेश्या : xxx दिव्वेणं वन्नेणं दिव्वेणं गंघेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढिए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अञ्चीए दिव्वणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा xxxi -पण्ण० प २। सू २८ । पृ० २६६ दिव्य वर्ण आदि के साथ देवताओं की लेश्या भी दिव्य होती है तथा दसों दिशाओं में उद्द्योतमान यावत् प्रभासमान होती है। ऐसा पाठ प्रज्ञापना पद २ में अनेक स्थलों पर है। टीकाकार ने दिव्य लेश्या का अर्थ देह तथा वर्ण की सुन्दरता रूप "लेश्या-देहवर्णसुन्दरतया"-किया है। __ ऐसा पाठ देवताओं के वर्णन में अनेक जगह है। "EE '३ नारकी और लेश्या परिणाम : इमीसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं पोग्गलपरिणाम पच्चणुभवमाणा विहरंति ? गोयमा ! अणिठं जाव अमणामं, एवं जाव अहेसत्तमाए [एवं णेयव्वं ] । -जीवा० प्रति ३ । उ ३ । सू ६५ | पृ० १४५-१४६ पोग्गलपरिणामे वेयणा य लेसा य नाम गोए य । अरई भए य सोगे खुहापिवासा य वाही य॥ उस्सासे अणुतावे कोहे माणे य माया लोहे य । चत्तारि य सण्णाओ नेरइयाणं तु परिणामे ।। -जीवा० प्रति ३ । उ ३ । सू ६५ । टीका । पृ० १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy