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________________ २५० लेश्या-कोश '१६ लेश्या और मरण : बालमरणे तिविहे पन्नत्ते, तंजहा-ठिअलेस्से, संकिलिट्ठलेस्से, पज्जवजायलेस्से। पंडियमरणे तिविहे पन्नत्ते, तंजहा-ठिअलेस्से, असंकिलिट्ठलेस्से, पज्जवजायलेस्से। बालपंडियमरणे तिविहे पन्नत्ते, तंजहा –ठिअलेस्से, असंकिलिट्ठलेस्से, अपज्जवजायलेस्से। -- ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२२ । पृ० २२० टीका-स्थिता-उपस्थिता अविशुध्यन्त्यसंक्लिश्यमाना च लेश्या कृष्णादियस्मिन् तस्थितलेश्यः, संक्लिष्टा-संक्लिश्यमाना संक्लेशमागच्छन्तीत्यर्थः, सा लेश्या यस्मिंस्तत्तथा, तथा पर्यवाः-पारिशेष्याद्विशुद्धिविशेषाः प्रतिसमयं जाता यस्यां सा तथा, विशुद्ध या वर्द्धमानेत्यर्थः, सा लेश्या यस्मिंस्तत्तथेति, अत्र प्रथमं कृष्णादिलेश्यः सन् यदा कृष्णादिलेश्येस्वेव नारकादिषूत्पद्यते तदा प्रथमं भवति, यदा तु नीलादिलेश्यः सन् कृष्णादिलेश्येषूत्पद्यते तदा द्वितीयं, यदा पुनः कृष्णलेश्यादिः सन् नीलकापोतलेश्येषूत्पद्यते तदा तृतीयम् , उक्त चान्त्यद्वयसंवादि भगवत्याम् यदुक्त-- “से णूणं भंते ! कण्हलेसे, नीललेसे जाव सुक्कलेसे भवित्ता काऊलेसेसु नेरइएसु उववज्जइ ? हंता, गोयमा ! से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! लेसाठाणेसु संकिलिस्समाणेसु वा विसुज्झमाणेसु वा काऊलेस्सं परिणमइ परिणमइत्ता काऊलेसेसु नेरइएसु उववजइ" त्ति, एतदनुसारेणोत्तरसूत्रयोरपि स्थितलेश्यादिविभागो नेय इति । पण्डितमरणे संक्लिश्यमानता लेश्याया नास्ति, संयतत्वादेवेत्ययं बालमरणाद्विशेषः, बालपण्डितमरणे तु संक्लिश्यमानता विशुद्ध यमानता च लेश्याया नास्ति, मिश्रत्वादेवेत्ययं विशेष इति । एवं च पण्डितमरणे वस्तुतो द्विविधमेव, संक्लिश्यमानलेश्यानिषेधे अवस्थितवर्द्धमानलेश्यत्वात् तस्य, त्रिविधत्वं तु व्यपदेशमात्रादेव, बालपण्डितमरणं त्वेकविधमेव, संक्लिश्यमानपर्यवजातलेश्यानिषेधे अवस्थितलेश्यत्वात् तस्येति, त्रैविध्यं त्वस्येतरब्यावृत्तितो व्यपदेशत्रयप्रवृत्तरिति । -ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २२२ । टीका मरण के समय में यदि लेश्या अवस्थित रहे तो वह स्थितलेश्यमरण, मरण के समय में यदि लेश्या संक्लिश्यमान हो तो वह संक्लिष्टलेश्यमरण, तथा मरणा के समय में यदि लेश्या के पर्यायों की प्रतिसमय विशुद्धि हो रही हो तो वह पर्यवजातलेश्यमरण कहलाता है। मरण के समय में यदि लेश्या की अविशुद्धि नहीं हो रही हो तो वह असंक्लिष्टलेश्यमरण तथा यदि मरण के समय में लेश्या की विशुद्धि नहीं हो रही हो तो अपर्यवजातलेश्यमरण कहलाता है। लेश्या की अपेक्षा से बालमरण के तीन भेद होते हैं -स्थितलेश्य, संक्लिष्टलेश्य और पर्यवजातलेश्य बालमरण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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