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________________ लेश्या-कोश २४६ आर्सध्यान में उपगत जीवों में नातिसं क्लिष्ट परिणाम वाली कापोत, नील, कृष्ण लेश्याएँ होती हैं । यह रौद्रध्यान में उपगत जीवों के लेश्या परिणामों की अपेक्षा से कथन है अर्थात् रौद्रध्यान में उपगत जीव की अपेक्षा आर्तध्यान में उपगत जीव के लेश्या परिणाम कम संक्लिष्ट होते हैं। टीकाकार का कथन है कि लेश्या कर्मोदय परिणाम जनित है । '६५.३ धर्मध्यान :'६५.४ शुक्लध्यान : धर्म और शुक्ल ध्यानों में वर्तता हुआ जीव किस-किस लेश्या में परिणमन करता है-इनके सम्बन्ध में पाठ उपलब्ध नहीं हुए हैं। ध्यान और लेश्या में अविनाभावी सम्बन्ध है कि नहीं-यह कहा नहीं जा सकता है लेकिन चौदहवें गुणस्थान में जब जीव अयोगी तथा अलेशी हो जाता है तब भी उसके शुक्ल ध्यान का चौथा भेद होता है। यहाँ लेश्या रहित होकर भी जीव के ध्यान का एक उपभेद रहता है । निव्वाणगमणकाले केवलिणोद्धनिरुद्ध जोगस्स । सुहुमकिरियाऽनियट्टि तइयं तणुकायकिरियस्स ।। तस्सेव य सेलेसीगयस्स सेलोव्व निप्पकंपस्स। वोच्छिन्नकिरियमप्पडिवाई झाणं परमसुक्कं ।। - ठाण० स्था ४ । उ १ । सू २४७ । टीका में उद्धृत निर्वाण के समय केवली के मन और वचन योगों का सम्पूर्ण निरोध हो जाता है तथा काययोग का अर्ध निरोध होता है। उस समय उसके शुक्ल ध्यान का तीसरा भेद 'सुहुमकिरिए अनियट्टी' होता है और सूक्ष्म कायिकी क्रिया-उच्छ्वासादि के रूप में होती है। उस निर्वाणगामी जीव के शैलेशत्व प्राप्त होने पर, सम्पूर्ण योग निरोध होने पर भी शुक्लध्यान का चौथा भेद 'समुच्छिन्नक्रियाऽप्रतिपाती' होता है, यद्यपि शैलेशत्व की स्थिति मात्र पांच ह्रस्व स्वराक्षर उच्चारण करने समय जितनी होती है। ध्यान का लेश्या के परिणमन पर क्या प्रभाव पड़ता है यह भी विचारणीय विषय है । क्या ध्यान के द्वारा लेश्या द्रव्यों का ग्रहण नियंत्रित या बंद किया जा सकता है ? ध्यान का लेश्या-परिणमन के साथ क्या सीधा संयोग है या योग के द्वारा ? इत्यादि अनेक प्रश्न विज्ञजनों के विचारने योग्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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