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________________ लेश्या -कोश नीलेश राशियुग्म जीवों के भी कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म, कल्योज चार उद्देशक कृष्णलेशी राशीयुग्म उद्देशक की तरह कहने लेकिन नारकी का उपपात बालुकाप्रभा की २२८ तरह कहना । कापोती राशियुग्म जीवों के भी कृष्णलेशी राशियुग्म की तरह कृतयुग्म, योज, द्वापरयुग्म, कल्यो चार उद्देशक कहने। लेकिन नारकी का उपपात रत्नप्रभा की तरह कहना | तेजोलेशी राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में कृष्णलेशी राशियुग्म की तरह चार उद्दे शक कहने। लेकिन जिनके तेजोलेश्या होती है उनके ही सम्बन्ध में ऐसा कहना | पद्मलेशी राशियुग्म जीवों के सम्बन्ध में कृष्णलेशी राशियुग्म की तरह ही चार उद्देशक कहने। तिर्येच पंचेन्द्रिय, मनुष्य तथा वैमानिक देवों के ही पद्मलेश्या होती है, अवशेष के नहीं होती है । जैसे पद्मलेश्या के विषय में चार उद्देशक कहे वैसे ही शुक्ललेश्या के भी चार उद्देशक कहने। लेकिन मनुष्य के सम्बन्ध में जैसा औधिक उद्देशक में कहा वैसा ही सममना तथा अवशेष वैसा ही जानना । कण्हलेस्सभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति० १ जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उह सगा भवंति तहा इमे वि भवसिद्धिय कण्हलेस्से हि(वि) चत्तारि उह सगा कायव्वा । एवं नीललेस्सभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्दे सगा कायन्त्रा । एवं काउलेस्से हि विचत्तारि उद्दे सगा । तेऊलेस्सेहि वि चत्तारि उह सगा ओहियसरिसा । पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्द सगा । सुक्कलेस्सेहि वि चत्तारि उद्दे सगा ओहियसरिसा | - भग० श ४१ । उ ३३ से ५६ । पृ० ६३७ कृष्णलेशी भवसिद्धिक राशियुग्म कृतयुग्म नारकियों के विषय में जैसे कृष्णलेशी राशियुग्म के चार उद्देशक कहे वैसे ही चार उद्देशक कहने। इसी प्रकार नीललेशी भवसिद्धिकराशियुग्म तथा कापोतलेशी भवसिद्धिक राशियुग्म के चार-चार उद्देशक कहने । तेजोलेशी भवसिद्धिक राशियुग्म जीवों के भी औधिक तेजोलेशी राशियुग्म जीवों की तरह चार उद्द े शक कहने । पद्मलेशी भवसिद्धिक राशियुग्म जीवों के भी ओघिक पद्मलेशी राशियुग्म जीवों की तरह चार उद्देशक कहने । शुक्ललेशी भवसिद्धिकराशियुग्म जीवों के भी औधिक शुक्ललेशी राशियुग्म जीवों की तरह चार उद्देशक कहने । जिसके जितनी लेश्या हो उतने विवेचन करने । अभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति० ? जहा पढमो उद्दे सगो | नवरं मणुस्सा नेरइया य सरिसा भाणियव्वा । सेसं तहेव xxx एवं च वि जुम्मेसु चत्तारि उह सगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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