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________________ १६८ लेश्या - कोश कृष्णलेशी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय का कहा; लेकिन चरम - अचरम उद्देशकों को बाद देकर नव उद्देश कहने । इसी प्रकार नीललेशी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय के नव उद्देशक कहने तथा कापोतलेशी अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय के भी नव उद्देशक कहने । •७६ सलेशी जीव और अल्पकर्म तर - बहुकर्मतर : सिय भंते ! कण्हलेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, नीललेस्से नेरइए महाकम्मतराए ? हंता ! सिया । सेकेणट्टणं भंते ! एवं वुच्चर- कण्हलेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, लस्से र महाकम्मतराए ? गोयमा ! ठिई पडुच्च, से तेणट्ठणं गोयमा ! जाव महाकम्मतराए । सिय भंते! नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काऊलेस्से नेरइए महाकम्मतराए हंता ? सिया । से केणट्ठणं भंते ! एवं बुच्चर - नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए काऊलेस्से नेरइए महाकम्मतराए ? गोयमा ! ठिई पडुच्च, से ते गोयमा ! जाव महा कम्मतराए । एवं असुरकुमारे वि, नवरं तेऊलेस्सा अब्भहिया, एवं जाव वेमाणिया, जस्स जइ लेस्साओ तस्स तत्तिया भाणियव्वाओ, जोइसियस्स न भण्इ, जावसिय भंते! पम्हलेस्से वैमाणिर अप्पकम्मतराए सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए ? हंता ! सिया । से केणट्टणं० ? सेसं जहा नेरइयस्स जाव महाकम्मतराए । -भग० श ७। उ ३ । प्र ६, ७ । पृ० ५१५ कदाचित् कृष्णले श्यावाला नारकी अल्पकर्मवाला तथा नीललेश्यावाला नारकी महाकर्मवाला होता है। कदाचित् नीललेश्यावाला नारकी अल्पकर्मवाला तथा कापीतलेश्या वाला नारकी महाकर्मवाला होता है। ऐसा स्थिति की अपेक्षा से कहा गया है । ज्योतिषी देवों को छोड़कर बाकी दंडक के सभी जीवों में ऐसा ही जानना; लेकिन जिसके जितनी लेश्या हो उतनी ही लेश्या में तुलना करनी । ज्योतिषी देवों में केवल एक तेजोलेश्या ही होती है । अतः तुलनात्मक प्रश्न नहीं बनता । यावत् वैमानिक देवों में भी कदाचित् पद्मलेशी वैमानिक अल्पकर्मतर तथा शुक्ललेशी वैमानिक महाकर्मतर हो सकता है । टीकाकार ने उसे इस प्रकार स्पष्ट किया है : कृष्णलेश्या अत्यंत अशुभ परिणामरूप होने के कारण तथा उसकी अपेक्षा नीललेश्या कुछ शुभ परिणामरूप होने के कारण सामान्यतः कृष्णलेशी जीव बहुकर्मवाला तथा नीललेशी जीव अल्पकर्मवाला होता है । परन्तु कदाचित् आयुष्य की स्थिति की अपेक्षा से कृष्णलेशी अल्पकर्मवाला तथा नीललेशी महाकर्मवाला हो सकता है । जिस प्रकार कृष्णलेशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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