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________________ १७६ लेश्या-कोश लेकिन आगमों में कई स्थलों में संयत में कृष्ण-नील-कापोत लेश्या होती है - ऐसा कथन पाया जाता है । ( देखो-२८ तथा '६६१) तेजोलेशी, पद्मलेशी तथा शुक्ललेशी जीव औधिक जीवों की तरह कोई एक आत्मारम्भी, परारम्भी, उभयारम्भी है, अनारम्भी नहीं है, कोई एक आत्मारम्भी, परारम्भी तथा उभयारम्भी है, अनारंभी नहीं है । इनमें संयत असंयत भेद कहने तथा संयत में प्रमत्त-अप्रमत्त भेद कहने। अप्रमत्तसंयत अनारम्भी होते हैं। प्रमत्तसंयत शुभयोग की अपेक्षा से अनारम्भी होते हैं तथा अशुभयोग की अपेक्षा से आत्मारम्भी, परारम्भी तथा उभयारम्भी हैं, अनारम्भी नहीं हैं। तथा इन लेश्याओं में जो असंयती हैं वे अविरति की अपेक्षा से आत्मारम्भी, परारम्भी तथा उभयारम्भी हैं, अनारम्भी नहीं हैं। '७२ सलेशी जीव और कषाय :'७२.१ सलेशी नारकी में कषायोपयोग के विकल्प : ____इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए जाव ( पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं) काऊलेस्साए वट्टमाणा ? (नेरइया कि कोहोवउत्ता माणोवउत्ता मायोवउत्ता लोभोवउत्ता ) गोयमा ! सत्तावीसं भंगा | xxx एवं सत्तवि पुढवीओ नेयवाओ, नाणत्तं लेस्सासु।। गाहा काऊ य दोसु, तइयाए मीसिया, नीलिया चउत्थीए । पंचमीयाए मीसा, कण्हा तत्तो परमकण्हा ॥ -भग० श १ । उ ५ । प्र १८१, १८६ । पृ ४०१ रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों के एक-एक नरकावास में बसे हुए कापोतलेशी नारकी क्रोधोपयोगवाले, मानोपयोगवाले, मायोपयोगवाले तथा लोभोपयोगवाले होते हैं। उनमें एकवचन तथा बहुवचन की अपेक्षा से क्रोधोपयोग आदि के निम्नलिखित २७ विकल्प होते हैं : (१) सर्वक्रोधोपयोगवाले। (२) बहु क्रोधोपयोगवाले, एक मानोपयोगवाला ; () बहु क्रोधोपयोगवाले, बहु मानोपयोगवाले ; (४) बहु क्रोधोपयोगवाले, एक मायोपयोगवाला; (५) बहु क्रोधोपयोगवाले, बहु मायोपयोगवाले ; (६) बहु क्रोधोपयोगवाले, एक लोभोपयोगवाला ; (७) बहु क्रोधोपयोग वाले, बहु लोभोपयोगवाले। (८) बहु क्रोधोपयोगवाले, एक मानोपयोगवाला, एक मायोपयोगवाला; (६) बहु क्रोधोपयोगवाले, एक मानोपयोगवाला, बहु मायोपयोगवाले ; (१०) बहु क्रोधोपयोगबाले, बहु मानोपयोगवाले, एक मायोपयोगवाला; (११) बहु क्रोधोपयोगवाले, बहु मानोपयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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