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________________ १६४ लेश्या-कोश वानव्यंतर मरण ( ग० २) को प्राप्त होते हैं ; तथा संख्यात तेजोलेशी वानव्यंतर एक समय में अवस्थित ( ग० ३) रहते हैं। ऐसे ही तीन-तीन गमक कृष्ण, नील तथा कापोतलेश्या के सम्बन्ध में कहने। ज्योतिषी देवों के जो असंख्यात विमान हैं वे सभी संख्यात विस्तार वाले हैं। उनके सम्बन्ध में तेजोलेश्या को लेकर उत्पत्ति, च्यवन ( मरण ) तथा अवस्थिति के तीन गमक वानव्यंतर देवों की तरह कहने। सौधर्मकल्प देवलोक के बत्तीस लाख विमानों में जो संख्यात विस्तार वाले हैं उनमें उत्पत्ति, च्यवन तथा अवस्थिति के तीन गमक एक तेजोलेश्या को लेकर ज्योतिषी विमानों की तरह कहने। सौधर्मकल्प देवलोक के बत्तीस लाख विमानों में जो असंख्यात विस्तार वाले हैं, उनमें उत्पत्ति, च्यवन तथा अवस्थिति के तीन गमक एक तेजोलेश्या को लेकर कहने। इन तीनों गमकों में उत्कृष्ट में असंख्यात कहना। ईशानकल्प देवलोक के विमानों के सम्बन्ध में सौधर्मकल्प की तरह तीन संख्यात तथा तीन असंख्यात के, इस प्रकार छः गमक कहने । ___ इसी प्रकार सनत्कुमार से सहस्रार देवलोक तक के विमानों के सम्बन्ध में तीन संख्यात तथा तीन असंख्यात के, इस प्रकार छः गमक कहने। लेकिन लेश्या में नानात्व कहना अर्थात् सनत्कुमार से ब्रह्मलोक तक पद्म तथा लांतक से सहस्रार तक शुक्ललेश्या कहनी।। आनत तथा प्राणत के जो संख्यात विस्तार वाले विमान हैं उनमें सहस्रार देवलोक की तरह शुक्ललेश्या को लेकर उत्पत्ति, च्यवन तथा अवस्थिति के तीन गमक कहने। जो असंख्यात विस्तारवाले विमान हैं, उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात उत्पन्न (ग. १) होते हैं। एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात च्यवन (ग० २) को प्राप्त होते हैं ; तथा एक समय में असंख्यात अवस्थित (ग० ३) रहते हैं। आरण तथा अच्युत विमानावासों में, जैसे आनत तथा प्राणत के विषय में कहा, वैसे ही छः छः गमक कहने। __इसी प्रकार |वेयक विमानावासों के सम्बन्ध में शुक्ललेश्या पर छः गमक आनतप्राणत की तरह कहने। पंच अनुत्तर विमानों में जो चार ( विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित ) असंख्यात विस्तार वाले हैं उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात शुक्ललेशी अनुत्तर विमानावासी देव उत्पन्न (ग०१) होते हैं ; जघन्य से एक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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