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________________ लेश्या - कोश १६३ ( आणय पाणएस) एवं संखेज्जवित्थडेसु तिन्नि गमगा जहा सहरसारे ; असंखेज्ज वित्थडेसु उववज्जंतेसु य चयंतेसु य एवं चेव संखेज्जा भाणियव्वा । पन्नत्तेसु असंखेज्जा, x x x आरणच्चुएस एवं चेव जहा आणयपाणएसु नाणत्त' . विमाणेसु एवं गेवेज्जगा वि । प्र ११ । पंचसु णं भंते! अणुत्तरविमाणेसु संखेज्जवित्थडे विमाणे एगसमएणं × × × केवइया सुक्कलेस्सा उववज्जंति पुच्छा तहेव, गोयमा ! पंचसु णं अणुत्तरविमाणेसु संखेज्ज वित्थडे अणुत्तरविमाणे एगसमएणं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा अणुत्तरो ववाइया देवा उववज्जंति, एवं जहा गेवेज्जविमाणेसु संखेज्जवित्थडेसु । xxx असंखेज्ज वित्थडेसु वि एएन भन्नंति नवरं अचरिमा अत्थि, सेसं जहा वेज्ज असंखेज्जवित्थडेसु । प्र १३ | -भग० श १३ । उ २ । प्र ४-१३ | पृ० ६८०-८१ असुरकुमार के चौंसठ लाख आवासों में जो संख्यात विस्तार वाले हैं, उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात तेजोलेशी असुरकुमार उत्पन्न ( ग० १) होते हैं D जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात तेजोलेशी असुरकुमार मरण ( ग० २ ) को प्राप्त होते हैं; तथा संख्यात तेजोलेशी असुरकुमार एक समय में अवस्थित ( ग० ३ ) रहते हैं । ऐसे ही तीन-तीन गमक कृष्ण, नील तथा कापोत लेश्या के सम्बन्ध में कहने । असुरकुमार के चौंसठ लाख आवासों में जो असंख्यात विस्तार वाले हैं, उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात तेजोलेशी असुरकुमार उत्पन्न ( ग० १) होते हैं ; जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से असंख्यात तेजोलेशी असुरकुमार मरण ( गं० २ ) को प्राप्त होते हैं; तथा असंख्यात तेजोलेशी एक समय में अवस्थित ग० ३ ) रहते हैं। ऐसे ही तीन-तीन गमक कृष्ण, नील तथा कापोत लेश्या के सम्बन्ध में कहने । नागकुमार से स्तनितकुमार तक के देवावासों के सम्बन्ध में असुरकुमार के देवावासों की तरह तीन संख्यात के तथा तीन असंख्यात के गमक, इस प्रकार चारों लेश्याओं पर छः छः गमक कहने । परन्तु जिसके जितने भवन होते हैं उतने समझने चाहिए । वानव्यंतर के जो संख्यात लाख विमान हैं वे सभी संख्यात विस्तार वाले हैं। उनमें एक समय में जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात तेजोलेशी वानव्यंतर उत्पन्न ( ग० १) होते हैं; जघन्य से एक, दो अथवा तीन तथा उत्कृष्ट से संख्यात तेजोलेशी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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