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________________ लेश्या-कोश १५६ उववज्जंति ? एवं जहा नीललेस्साए तहा काऊलेस्साए वि भाणियव्वा जाव-से तेण?णं जाव उववज्जंति । -भग० श १३ । उ १। प्र १६-२१ । पृ ६७६ कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्यास्थान से संक्लिष्ट होते-होते कृष्णलेश्या में परिणमन करता हुआ कृष्णलेश्या में परिणमन करके कृष्णलेशी नारकी में उत्पन्न होता है। कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्या स्थान से संक्लिष्ट अथवा विशुद्ध होते-होते नीललेश्या में परिणमन करता हुआ नीललेश्या में परिणमन करके नीललेशी नारकी में उत्पन्न होता है। कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्यास्थान से संक्लिष्ट अथवा विशुद्ध होते-होते कापोतलेश्या में परिणमन करता हुआ कापोतले श्या में परिणमन कर के कापोतलेशी नारकी में उत्पन्न होता है । ६७°२२ देवों में उत्पत्ति : से नूणं भंते ! कण्हलेस्से नील जाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसु देवेसु उववज्जति ? हंता गोयमा ! एवं जहेव नेरइएसु पढमे उद्दसए तहेव भाणियव्वं, नीललेस्साए वि जहेव नेरइयाणं जहा नीललेस्साए एवं जाव पम्हलेस्सेसु, सुक्कलेस्सेसु एवं चेव, नवरं लेस्सट्ठाणेसु विसुज्झमाणेसु विसुज्झमाणेसु सुक्कलेस्सं परिणमइ सुक्कलेस्सं परणमइत्ता सुक्कलेस्सेसु देवेसु उववज्जति, से तेण?णं जाव- उववज्जंति । -भग० श १३ । उ २।। प्र १५ । पृ० ६८१ कृष्णलेशी, नीललेशी, यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्यास्थान से संक्लिष्ट होते-होते कृष्णलेश्या में परिणमन करता हुआ कृष्णलेश्या में परिणमन करके कृष्णलेशी देवों में उत्पन्न होता है। कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शुक्ललेशी जीव लेश्यास्थान से संक्लिष्ट अथवा विशुद्ध होते-होते नीललेश्या में परिणमन करता हुआ नीललेश्या में परिणमन करके नीललेशी देव में उत्पन्न होता है। कृष्णलेशी, नीललेशी यावत् शुक्ललेशी जीत्र लेश्यास्थान से संक्लिष्ट अथवा विशुद्ध होते-होते कापोतलेश्या में परिणमन करता हुआ कापोतलेश्या में परिणमन करके कापोतलेशी देवों में उत्पन्न होता है। इसी प्रकार तेजोलेश्या, पद्मलेश्या तथा शुक्ललेश्या के संबंध से जानना। लेकिन इतनी विशेषता है कि लेश्यास्थान से विशुद्ध होते-होते शुक्ललेश्या में परिणमन करता हुआ शुक्ललेश्या में परिणमन करके शुक्ललेशी देवों में उत्पन्न होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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