SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या-कोश १५१ (ख) सुक्कलेस्से णं भंते ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अन्तोमुहुत्तमब्भहियाई।। -जीवा. प्रति ६ । सू २६६ । पृ० २५६ शुक्ललेशी जीव की शुक्ललेशीत्व की अपेक्षा जघन्य स्थिति अन्तर्महूर्त की तथा उत्कृष्ट स्थिति साधिक अन्तर्मुहूर्त तैंतीस सागरोपम की होती है । ६४८ अलेशी जीव की स्थिति :(क) अलेस्से णं पुच्छा ? गोयमा ! साइए अपज्जवसिए । --पण्ण० प १८ । द्वा ८। सूह। पृ० ४५६ (ख) अलेस्सेणं भंते ? साइए अपज्जवसिए । --जीवा० प्रति हसू २६६ । पृ० २५८ अलेशी जीव सादि अपर्यवसित होते हैं। ६५ सलेशी जीव का लेश्या की अपेक्षा अंतरकाल :'६५.१ कृष्णलेशी जीव का : कण्हलेसस्स णं भंते। अंतरं कालओ केवञ्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तमब्भहियाई। --जीवा० प्रति ६ । सू २६६ । पृ० २५८ ___ कृष्णलेशी जीव का कृष्णलेशीत्व की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त का तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अन्तमुहूर्त तैंतीस सागरोपम का होता है। '६५.२ नीललेशी जीव का :एवं नीललेसस्स वि। -जीवा० प्रति ह । सू २६६ । पृ० २५८ नीललेशी जीव का नीललेशीत्व की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त का तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अन्तर्मुहूर्त तैंतीस सागरोपम का होता है । '६५.३ कापोतलेशी जीव का :(एवं ) काऊलेसस्स वि। -जीवा० प्रति ६ । सू २६६ । पृ० २५८ कापोतलेशी जीव का कापोतलेशीत्व की अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूर्त का तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक अन्तर्महूर्त तैंतीस सागरोपम का होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy