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________________ लेश्या - कोश १४७ जैसा कृष्णलेशी जीव- दण्डक का विवेचन किया- वैसा नीललेशी जीव- दण्डक का भी विवेचन करना | ६१४ कापोतलेशी जीव-दण्डक और समपदः - काऊलेस्सा नेरइर्हितो आरम्भ जाव वाणमंतरा, नवरं काऊलेस्सा नेरइया daणाए जहा ओहिया । -पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११ । पृ० ४३७ कापोत लेश्या का नारकी से लेकर वानव्यंतर देव तक (कृष्णलेशी नारकी की तरह) विचार करना लेकिन कापोतलेशी नारकी की वेदना -- औधिक नारकी की तरह जानना । *६१*५ तेजोलेशी जीव- दण्डक और समपदः तेलेस्साणं भंते! असुरकुमाराणं ताओ चेव पुच्छाओ ? गोयमा ! जहेव ओहिया तव, नवरं वेयणाए जहा जोइसिया । पुढविआउवणसरपंचेंदियतिरिक्खमणुस्सा जहा ओहिया तहेव भाणियव्वा, नवरं मा किरियाहिं जे संजया ते पमत्ता य अपमत्ता य भाणियव्वा, सरागा वीरागा नत्थि । वाणमंतरा तेऊलेस्साए जहा असुरकुमारा, एवं जोइसियवेमाणिया वि, सेसं तं चेव । - पण्ण० प १७ | उ १ । सू ११ । पृ० ४३७ तेजोलेशी सर्व असुरकुमार औधिक असुरकुमार की तरह समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं हैं परन्तु वेदना - ज्योतिषी की तरह समझना । तेजोलेशी सर्व पृथ्वी काय अप्काय- वनस्पतिकाय-तिर्यचपंचेन्द्रिय मनुष्य औधिक की तरह समझना परन्तु मनुष्य की क्रिया में विशेषता है— उनमें जो संयत हैं वे प्रमत्त तथा अप्रमत्त के भेद से दो प्रकार के हैं परन्तु सराग तथा वीतराग-ऐसे भेद नहीं करना । - तेजोलेशी वानव्यंतर देव असुरकुमार की तरह समाहारी यावत् समोपपन्नक नहीं है । इसी प्रकार ज्योतिषी तथा वैमानिक देवों के सम्बन्ध में समझना । ६१६ पद्मलेशी जीव-दंडक और समपद : एवं पहलेस्सा विभाणियव्वा, नवरं जेसिं अस्थि । Xxx नवरं पम्हलेस्ससुक्कलेस्साओ पंचेंदिय तिरिक्खजोणियम णुस्सवेमाणियाणं चेव । -- पण्ण० प १७ । उ १ । सू ११ | ० ४३७ जैसा तेजोलेशी जीव दंडक के विषय में कहा, उसी प्रकार पद्मलेशी जीव दंडक के विषय में समझना । परन्तु जिसके पद्मलेश्या होती है उसी के कहना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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