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________________ १०० लेश्या - कोश • ५८ किसी एक योनि से स्व पर योनि में उत्पन्न होने योग्य जीवों में कितनी लेश्या* ५८१ रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में : *५८११ पर्याप्त असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में : गमक-- १ : पर्याप्त असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्येच योनि से रत्नप्रभापृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है (पजत्ता (त्त) असन्नि पंचिदियतिरिक्ख जोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरइएस उववज्जिन्त्तर x x x तेसि णं भंते! जीवाणं कर लेस्साओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! तिन्नि लेस्साओ पन्नताओ । तं जहा कण्हलेस्सा, नोललेस्सा, काऊलेस्सा ) उनमें कृष्ण, नील तथा कापोत तीन लेश्या होती हैं । -भग० श २४ । उ १ । प्र ७, १२ | पृ० ८१५ * इस विवेचन में निम्नलिखित नौ गमकों की अपेक्षा से वर्णन किया गया है :११ - उत्पन्न होने योग्य जीव की औधिक स्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की औधिक स्थिति, २- उत्पन्न होने योग्य जीव की औधिक स्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की जघन्यकाल स्थिति, ३ – उत्पन्न होने योग्य जीव की औधिक स्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की उत्कृष्टकालस्थिति, ४ -- उत्पन्न होने योग्य जीव की जघन्यकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की औधिक स्थिति, ५. - उत्पन्न होने योग्य जीव की जघन्यकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की जघन्यकाल स्थिति, ६ - उत्पन्न होने योग्य जीव की जघन्य स्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की उत्कृष्टकाल स्थिति, ७- उत्पन्न होने योग्य जीव की उत्कृष्टकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवनस्थान की औधिक स्थिति, - उत्पन्न होने योग्य जीव की उत्कृष्टकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की जघन्य कालस्थिति, ६ - उत्पन्न होने योग्य जीव की उत्कृष्टकालस्थिति तथा उत्पन्न होने योग्य जीवस्थान की उत्कृष्टकाल स्थिति | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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