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________________ ૮૮ लेश्या-कोश (ग) ब्रह्मलोक के बाद के देव में ( लांतक से नव वेयक देव में )। सेसेसु एगा सुक्कलेस्सा। ___ --जीवा० प्रति३ । सू २१५ । पृ० २६६ लांतक से नव वेयक देव में एक शुक्ल लेश्या होती है । (घ) अनुत्तरोपपातिक देव में - अणुत्तरोववाइयाणं एगा परमसुक्कलेस्सा। __-~जीवा० प्रति ३ । सू २१५ । पृ० २३६ अनुत्तरोपपातिक देव में एक परम शुक्ल लेश्या होती है। •२६ पंचेन्द्रिय में(पंचेंदिया ) छल्लेस्साओ। -भग० श २० । उ१। प्र४ । पृ० ७६० ( औधिक ) पंचेन्द्रिय के छः लेश्या होती है। समुच्चय गाथा कहानीलाकाऊतेऊलेस्सा य भवणवंतरिया। जोइससोहम्मीसाणे तेऊलेस्सा मुणेयव्वा ॥ कप्पेसणकुमारे माहिंदे चेव बंभलोए य । एएसु पम्हलेस्सा तेणं परं सुकलेस्साओ ।। पुढवीआउवणस्सइ बायर पत्तेय लेस्स चत्तारि। गब्भयतिरयनरेसु छल्लेस्सा तिणि सेसाणं ।। --संग्रह गाथा -भग० श १ । उ २ । प्र९७ टीका से भवनपति तथा वाणव्यंतर देव में चार लेश्या, ज्योतिष-सौधर्म-ईशान देव में तेजो लेश्या, सनत्कुमार-माहिन्द्र-ब्रह्म देव में पद्म लेश्या, लातंक से अनुत्तरोपपातिक देव में शुक्ललेश्या, पृथ्वीकाय-अपकाय, बादर प्रत्येक शरीरी बनस्पतिकाय में चार लेश्या, गर्भज तिर्यंच-मनुप्य में छः लेश्या, शेष जीवों में तीन लेश्या होती है । '२७ गुणस्थान के अनुसार जीवों में (क) प्रथम गुणस्थान के जीवों में-छः लेश्या होती है। (ख) द्वितीय गुणस्थान के जीवों में-छः लेश्या होती है। (ग) तृतीय गुणस्थान के जीवों में-छः लेश्या होती है। (घ) चतुर्थ गुणस्थान के जीवों में छः लेश्या होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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