SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ '१५'१ सूक्ष्म वनस्पतिकाय में अवसेसं जहा पुढविकाश्याणं । लेश्या - कोश सूक्ष्म वनस्पतिकाय में तीन लेश्या होती है । '१५२ वादर वनस्पतिकाय में ( बायर वणरसइकाइया ) तहेव जहा बायर पुढविकाइयाणं । बादर वनस्पतिकाय में चार लेश्या होती है । १५३ अपर्याप्त बादर वनस्पतिकाय में *१५४ पर्याप्त बादर वनस्पतिकाय में चार लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला । '१५५ प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय में तीन लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला । '१५६ अपर्याप्त प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय में Jain Education International - जीवा० प्रति १ । सू १८ | पृ० १०६ चार लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला । * १५७ पर्याप्त प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय में - जीवा० प्रति १ । सू २१ । पृ० ११० चार लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला । *१५८ साधारण शरीर बादर वनस्पतिकाय में तीन लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला । ६६ तीन लेश्या होती है । पाठ नहीं मिला । *१५ उत्पल आदि दस प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय में (क) (उपव्वं एकपत्तए) ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेसा नीललेसा काऊलेसा. तेलेसा ? गोयमा ! कण्हलेसे वा जाव तेऊलेसे वा कण्हलेस्सा वा नीललेस्सा वा काऊलेस्सा वा तेऊलेसा वा अहवा कण्हले से य नीललेस्से य एवं एए दुया संजोग - तिया संजोग चउक्कसंजोगेणं असीइ भंगा भवंति । भग० श ११ । उ १ । सू १३ । पृ० २२३ उत्पल जीव में चार लेश्या होती हैं । उत्पल का एक जीव कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला होता है । अथवा अनेक जीव कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले होते हैं, अथवा एक कृष्णलेश्या वाला तथा एक नीललेश्यावाला होता है । इस प्रकार द्विकसंयोग, त्रिसंयोग, तथा चतुष्क संयोग से सब मिलकर अस्सी भांगे कहना । एक पत्री उत्पल वनस्पतिकाय में प्रथम की चार लेश्या होती है । एक जीव के चार लेश्या, अनेक जीवों के भी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016037
Book TitleLeshya kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1966
Total Pages338
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy