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________________ अंगुल के तीन भेद होते हैं-यथा, आत्मांगुल, उत्सेधांगुल तथा प्रमाणांगुल। श्रमण भगवान महावीर के अर्धांगुल से हजार गुणां अधिक प्रमाणांगुल होता है । प्रश्न- हे भगवन् ! प्रमाणांगुल किसे कहते हैं। उत्तर-उत्सेध अंगुल से हजार गुना अधिक हो उसे प्रमाणांगुल कहते हैं। तथा प्रकर्ष रूप जिसका प्रमाण सबसे बड़ा हो-उसे प्रमाणांगुल कहते हैं ।। भरत क्षेत्र आदि क्षेत्र में जब एक-एक चक्रवर्ती होते हैं उनके समय में उनके यहाँ कांगणी रत्न होता है। उसका वजन आठ सौनेये भर होता है। उस कागणी रत्न के चारों तरफ के चार-ऊपर-नीचे दोनों-ये छह तल होते हैं। ऊपर-नीचे के चारों तरफ के आठ और बीच में चारों तरफ के चार-ऐसे बारह हांस ( पेल ) होते हैं। चार ऊपर के चार नीचे के—ऐसे आठ कणिका (कौने) होते हैं। अधिकरक नाम ( सोनार की ऐरण ) के संस्थान ( आकार ) से संस्थित कहा है । उस कांगनी रत्न के एक-एक कोड़ी ( तले) एक उत्सेधांगुल के प्रमाण चौड़ी कही है। और वह श्रमण भगवान महावीर की अर्धांगुल को एक हजार गुणन करने से प्रमाणांगुल होता है। नोट-महावीर स्वामी का शरीर स्वयं के आत्मांगुल से ८४ अंगुल ( साढ़े तीन हाथ ) ऊँचा है तथा उत्सेधांगुलसे १६८ अंगुल का ऊँचा शरीर होता है। और जो उत्तम पुरुष होते हैं उनका १०८ अंगुल तथा १२० अंगुल शरीर ऊँचा कहा है। वह ८४ अंगुल तो सहज ही ऊँचा और दोनों हाथ ऊँचा करे तब २४ अंगुल ऊपर होने से--१०८ अंगुल होते हैं। (प) भगवान के माता-पिता का उपासना तथा परभव काल समणस्ल णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावञ्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था । तेणं बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पालहत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवजित्ता, कुससंथार दुरुहित्ता भत्तं पञ्चक्खाइंति, भत्तं पञ्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणार सोसियसरीरा कालमासे कालं किञ्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता ।। अच्चुएकप्पे देवत्ताए उववण्णा तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए। चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिझिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्तंति परिणिचाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । -आया० श्र २/अ १५/सू २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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