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________________ ( 60 ) योगीन्दु ने कहा है-"पुण्य से वैभव, वैभव से अहंकार, अहंकार से बुद्धिनाश और बुद्धिनाश से पाप होता है । इसलिए पुण्यदेय है, त्याज्य है । कषायों को उत्तेजित करने वाले तत्वों को 'नौ कषाय' कहा जाता है। यहाँ 'नौ' का अर्थ है-ईषद्, थोड़ा। कषाय के समाप्त हो जाने पर केवल योग से पुण्य कर्म की बंध होता रहता है। जैन दर्शन सूक्ष्म और गहन है तथा मूल सिद्धान्त ग्रंथों में इसका क्रम बद्ध तथा विषयानुक्रम नहीं होने के कारण इसके अध्ययन में तथा इसके समझने में कठिनाई होती है । अनेक विषयों के विवेचन अपूर्ण अधूरे है अतः अनेक स्थल इस कारण से भी समझ में नहीं आते हैं। अर्थ बोध की इस दुर्गमता के कारण जैन-अजैन दोनों प्रकार के विद्वान जैन दर्शन के अध्ययन से सकुचाते हैं । क्रमबद्ध और विषयानुकम विवेचन का अभाव जैन दर्शन के अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा उपस्थित करता है-ऐसा हमारा अनुभव है। अध्ययन की बाधा मिटाने के लिए हमने जैन विषय कोश की एक परिकल्पना बनायी और उस परिकल्पना के अनुसार समग्र आगम ग्रंथों का अध्ययन किया और उस अध्ययन के अनुसार सर्वप्रथम हमने विशिष्ट पारिभाषिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों की एक सूची बनायी। विषयों की संख्या १००० से भी अधिक हो गई तथा इन विषयों का सम्यक वर्गीकरण करने के लिए हमने आधुनिक सार्व-भौमिक दशमलव वर्गीकरण करने का अध्ययन किया। तत्पश्चात् बहुत कुछ इसी पद्धति का अनुसरण करते हुए हमने सम्पूर्ण वाङ्मय को १०० वर्गों में विभक्त करके मूल विषयों वर्गीकरण की एक रूप देखा ( देखें पृ०६ से ११ ) की। यह रूप देखा कोई अंतिम नहीं है। परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा भी रह सकती है। मूल विषयों की सूची भी हमने तैयार की है। उनमें से जीव परिणाम ( मूल विषयांक ०४ ) की उप विषय सूची लेश्या कोश में दे दी गई है। तथा कर्मवाद ( मूल विषयांक १२) तथा क्रियावाद (मूल विषयांक १३) की उपसूची क्रिया कोश में दी गई है। तीर्थकर वर्धमान--जीव द्वारा ( जैन वाङ्मय का दशमलव वर्गीकरण संख्या .०३) के अंतर्गत तथा जीवनी ( जैन वाङ्मय का दशमलव वर्गीकरण संख्या ६२ ) के अंतर्गत समाविष्ट है । हमने जीव द्वार व जीवन के उपविषयों की सूची अलग-अलग दी है । देखें पृष्ठ १२-१३) इन सूचियों में भी परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा रह सकती है । जीव द्वार में वर्धमान नाम विषयांक ३५४ में तथा जीवनी में नाम शब्द विषयांक ६२२४ है। पाठों के संकलन-संपादन में प्रयुक्त ग्रन्थों की सूची में यद्यपि हमने कतिपय ग्रंथों का ही नाम दिया है तथापि अध्ययन हमने अधिक ग्रंथों का किया है। चूर्णी, निर्यक्ति टीका आकि आदि का भी अध्ययन किया है। दिगम्बर ग्रन्थ-कषाय पाहुडं वड्ढमाणचरिउ, वीरजिणिंदचरिउ, वर्धमान चरित्तम्, उत्तरपुराण आदि ग्रन्थों का भी उपयोग किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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