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________________ ( ४२१ ) जीव विशाखभूति युवराज की धारिणी नाम की स्त्री से विश्वभुति नाम से पुत्र रूप में अवतरित हुआ। वह विश्वभूति अनुक्रम से योवन वय को प्राप्त हुआ। एक समय नन्दनवन में देवकुमार की तरह वह विश्वभूति अन्तःपुर सहित पुष्पकरंडक उद्यान में कोड़ा करने के लिए गया। वह क्रीड़ा कर रहा था कि उस समय राजा का पुत्र विशाखनन्दी क्रीड़ा करने की इच्छा से वहाँ पाया। किन्तु विश्वभूति अन्दर होने से वह बाहर रहा। उस समय पुष्प लेने के लिए उसकी माता की दासियाँ वहाँ आई। उन्होंने विश्वभूति को भीतर और विशाखनन्दी को बाहर देखा। अपनी दासियों से यह सब वृत्तांत सुना फलस्वरूप महादेवी रानी कोपायमान हुई । कोपायमान होकर वह बैठने के घर में जाकर बैठी। राजा-रानी की इच्छा पूर्ति करने के लिए यात्रा की भेरी बजाई और कपटपूर्वक सभा में कहा कि-अपना पुरुषसिंह नामक सामन्त उद्धत होकर गया है उसको जीतने के लिए मैं जाऊंगा। यह समाचार सुनकर सरल स्वभावी विश्वभूति वन में से राजसभा में आया और भक्ति से राजा को छोड़कर स्वयं लश्कर के साथ प्रस्थान किया। वह पुरुषसिंह सामन्त के पास गया। वहाँ उसको आशावंत देखकर स्वयं वापस आया। मार्ग में पुष्पकरंडक वन के पास आया। वहाँ द्वारपाल ने सूचित किया कि अन्दर विशाखनन्दी कुमार है । यह सुनकर चिन्तन करने लगा कि मुझे कपट से पुष्पकरंडक उद्यान से निकाला। बाद में उसने क्रोधित होकर मुष्टि से एक कोठे के वृक्ष पर प्रहार किया-फलस्वरूप सर्वफल टूटकर पड़ने से पृथ्वी चारों ओर आच्छादित हो गई। यह सब बताकर विश्वभूति द्वारपाल से बोला कि यदि मेरे पिता पर भक्ति न होती तो मैं इस कोठे के फल की तरह तुम सबका मस्तिष्क भूमि पर गिरा देता । परन्तु उसके पर की भक्ति से मैं ऐसा नहीं कर सकता । परन्तु इस वंचनायुक्त भोग की मुझे आवश्यकता नहीं है । ऐसा बोलता हुआ वह विश्वभूति संभूति मुनि के पास गया और उनके पास सामायिक चारित्र स्वीकार किया। उसको दीक्षित हुआ सुनकर विश्वनन्दी राजा अनुज भाई सहित वहाँ आया और उसको नमस्कार किया तथा क्षमायाचना की तथा वापस राज्य लेने का अनुरोध किया। परन्त विश्वभूति को राज्य की इच्छा बिना जानकर राजा वापस अपने घर आया। इधर विश्वभूति मुनि ने गुरु के साथ अन्यत्र विहार किया । तपस्या से अति कृश हुए और गुरु की आज्ञा से एकाकी विहार करते हुए विश्वभूति मुनि अन्यदा मथुरापुरी पधारे। उस समय वहाँ राजा की पुत्री से विवाह करने के लिए विशाखनन्दी राजपुत्र भी मथुरा आया हुआ था। मुनि विश्वभूति मासक्षमण के अन्त में पारण करने के लिए मथुरा नगरी में गौचरी के लिए गये। जहाँ विशाखनन्दी की छावनी थी-उसके नजदीक आये-फलस्वरूप उसके लोगों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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