SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 451
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३६८ ) तुझे उपदेश देकर (वेजोलेश्या आदि विषयक) शिक्षित किया और भगवान ने तुझे बहुत बनाया, इतने पर भी तू भगवान के साथ अनार्यपक्ष कर रहा है। हे गोशालक ! तु ऐसा मत कर। हे गोशालक ! तू ऐसा करने के योग्य नहीं है। तू वही मंखलिपुत्र गोशालक है, दूसरा नहीं, तेरी वही प्रकृति है। सर्वानुभूति अनगार की बात सुनकर गोशालक अत्यन्त कुपित हुआ और अपने तपतेज के द्वारा एक ही प्रहार में कूटाघात की तरह सर्वानुभूति अनगार को जलाकर भस्म कर दिया। उन्हें भस्म करके गोशालक फिर भ्रमण भगवान महावीर स्वामी को अनेक प्रकार के आक्रोश वचनों से बकने लगा यावत् 'आज मेरे से तुम्हें' सुख होने वाला नहीं है। नोट-यद्यपि गोशालक के सामने बोलने की भगवान ने मनाई की थी। तथापि अपने धर्माचार्य के अनुराग से सर्वानुभूति अनगार से नहीं रहा गया और उसने गोशालक को उचित बात कही। जिस पर कुपित होकर उसने उनको जलाकर भस्म कर दिया। .२ सुनक्षत्र मुनि का हनन पंडितमरण स्वामिशिष्यः सुनक्षत्रस्तमथ स्वामिनिम्दकम् । गुरुभक्त्याऽनुशास्ति स्म भृशं सर्षानुभूतिषत् ॥ ४०६ ॥ गोशालमुक्तया तेजोलेश्यया प्रज्वलसतुः। प्रभुं प्रदक्षिणीकृत्याऽऽदाय भूयो प्रतानि च ॥ ४१० ॥ आलोच्याथ प्रतिक्रम्य क्षमयित्वाऽखिलान्मुनीन् । सुनक्षत्रमुनिर्मुत्वाऽच्युतकल्पे सुरोऽभवत् ॥ ४११ ॥ -त्रिशलाका पर्व १०सर्ग ८ तेणं कालेणं समएणं समणस्स भगघओ महाषीरस्स अंतेषासी कोसलजणवप सुनक्खत्ते णामं अणगारे पगइभहए, जावविणीए, धम्मायरियाणुरागणं जहा सव्वाणुभूइ तहेव जाव सच्चेव ते सा छाया णो अण्णा। तएणं से गोसाने मंखलिपुत्ते सुणक्खत्तेणं अणगारेणं एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते ५ सुणखत्तं अणगारं तवेणं तेएणं परितावेए। तएणं से सुणक्खत्ते अणगारे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेएणं परिताषिए समाणे जेणेष समणे भगवं महापौरे तेणेव उवागच्छद, ते० २-गच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो बंदर णमसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सयमेव पंच महन्वयाई आरूहेइ, स० २ मारूहित्ता समणा य समणीओ य खामेइ, सम० २ स्वामित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते आणुपुब्बीए कालगए। -भग० श १५॥प्र १०७।१०।पृ. १८८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy