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( ३१३ ) वेढिम-पूरिम-संघाइमेणं चउन्विहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अप्पाणं अलंकियविभूसियं करेइ करित्ता दहरमलयसुगंधगंधिएहि गाxयाई भुखंडेइ दिव्वं च सुमणदाम पिण ।
-राय. सू. १३७ अभिषेक पूरा होने पर वह सुर्याभदेव वहाँ से पूर्व के द्वार से निकल कर अलंकार सभा को प्रदक्षिणा करता हुआ उसमें से उसी द्वार में बैठा और वहां पर मुख्य सिंहासन पर बेठा ।
तत्पश्चात उसके सामानिक सभ्यदेव उसके समक्ष वहाँ सारी अलंकार सामग्री उपस्थित की। सर्व प्रथम तो स्नान होने में उसने सुकोमल अंगुलछणा से स्वयं के अंगों के लूँछे। उसके ऊपर सरस गोशीर्ष चन्दन का लेप किया। और इसके बाद एक ही फूंक में उड़न सके ऐसे घोड़े की लाल जैसा नरम, सुन्दर, वर्ण और स्पर्श वाला और जिसका अंत सोना से जड़ित है ऐसा स्फटिक जैसा उज्ज्वल, सफेद देवदूष्य युगल उसने पहना । बाद में हार, अघहार, एकावल, मोती की माला, रत्नावल, अंगद, केपूर, कड़ें, बेरखें, कणदोर, दसआंगलिये वेद वीटीओं, छाती ऊपर दोरे, मावलिया, कंठी, झूमण, कान में कुंडल, कड़े, वेरखें, कणवीर, दस आंगलिये वेद वींटिओं।
[१३८] तए णं से सूरियाभे देवे केसालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं पत्थालंकारेण चउषिहेण अलंकारेण अलंकियविभूसिए समाणे पडिपुण्णलंकारे सीहासणाओ अब्भुढे ति अन्भुट्टित्ता अलंकारियसभाओ पुरस्थिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमह पडिणिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति षषसायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं हारेणं अणुपषिसति, जेणेष सीहासणवरगए जाव सन्निसन्ने। तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा देवा पोत्थयरयणं उ०पणेति, तते णं से सूरियाभे देवे पोत्थयरयणं गिण्हति गिण्हित्ता पोत्थयरयणं मुयद मुश्त्ता पोत्थयरयणं विहाडेइ विहाडित्ता पोत्थयरयणं वाएति पोत्थयरयणं चाएत्ता धम्मियं पवसायं षषसइ षषसइत्ता पोस्थयरयणं पडिनिक्सपर सीहासणातो अब्भुढे ति अब्भुढे त्ता पवसायसभातो पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिनिक्खमित्ता जेणे व नंदा पुक्खरिणी तेणेष उवागच्छति उवागच्छित्ता गंदापुक्खरिणि पुरथिमिल्नेणं तोरणेणं तिसोवाणपडिरूपएणं पञ्चोरुहइ पचोरुहित्ता हत्थपाई पक्खालेति पक्खालित्ता आयंते चोखे परमसूइभूए एगं महं सेयं रययामयं विमलं सलिलपुण्णं मत्तगयमुहागितिकुंभसमाणं भिंगारं पगेण्हति पण्हित्ता आई तत्थ उप्पलाई जाप [पृ० २१ पं० १०] सतसहस्स
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