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________________ ( ३१२ ) हनहनाने मांडे, हरित्त की तरह चीस पाड़ने लगे। कितनेक उछलते है, सिंहनाद करते है, ऊँचे उड़ते हैं। नीचे पड़ते हैं। पैर पछाड़ते है, गाजते है, झबकते है। बरसते हैं। स्वयंस्वयं का नाम कहकर सम्मलाते है। तेज से तपते हैं, कितनेक मोटे से थू थू करते है और कितनेक स्वयं के हाथ में धूपधाणे, कलश और कमल आदि रखकर इधर-उधर दोड़ादोड़ी करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक देव स्वयं के स्वामी के अभिषेक की खुशाली मनाते है । अभिषेक होने के बाद वे हर एक देव हाथ जोड़ कर बोले कि हे नन्द ! तुम्हारी जय हो ओ। हे भद्र। तुम्हारी जय हो। जो अजित है उसे कौन जीत सकता है और जो जीतते है उप्तकी रक्षा तुम करो। जैसे देवों में इन्द्र, ताराओं में चन्द्र, असुरों में चमर, नागोंमें धरण और मनुष्यों में भरत की तरह तुम हमारे बीच में रहो। ___ तथा बहुत से पल्योपम, बहुत से सागरोपम, बहुत से पल्योपम और सागरोपम तक हमारे ऊपर और सारे सुर्यां भविमान ऊपर आधिपत्य का भोग कर और हम सबको सुरक्षित रखते हुये तुम यहाँ आनन्द से विहरणकर । ऐसा बोल कर वे सब देव-देवियाँ जय-जय नाद किया और इस प्रकार सुर्याभदेव का इन्द्राभिषेक पूरा हुआ। [१३७] तए णं से सूरिया देवे महया महया इंदाभिसेगेणं अभिसित्ते समाणे अभिसेयसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छति निग्गच्छित्ता जेणेष अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अणुप्पया. हिणीकरेमाणे २ अलंकारियसभं पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति अणुपषिसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति सीहासणवरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने। ___ तए णं तस्स सू रियाभस्स देघस्स सामाणियपरिसोषपन्नगा अलंकारियभंडं उवट्ठवेंति, तए णं से सू रियाभे देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइ लूहेति लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेण गायाइ अणुलिंपति अणुलिपित्ता नासानीसासवायवोझ चक्खुहर बन्नफरिसजुतं हथलालापेलवातिरेगं धवल कण्णगखचियन्तकम्म आगासफालियसमप्पभं दिव्वं देषदूसजुयलं नियंसेति नियंसेत्ता हारं पिणद्ध ति पिणद्धित्ता अद्धहार पिणच पगापलि पिणद्ध ति पिणद्धिता मुत्तावलि पिणद्ध ति पिणद्धित्ता रयणावलि पिणद्ध। पिणद्धित्ता एवं अंगयाइ केयूराइ कडगाई तुडियाइ कडिसुत्तगं दसमुदाणंतर्ग वच्छसुत्तगं मुरवि कंठमुरवि पालव कुंडलाई चूडामणि मउडं पिणद्ध गथिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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